बहुत भीड़ थी उस दिन, ढेरों ख्याल थे,
पकड़ तो मजबूत ही थी दोनों के जज़्बातों की
लेकिन कब तक, आखिर कब तक
पकड़ बनी रहती,
ख्यालों के धक्कम धक्के ने
पकड़ थोड़ी कमजोर कर ही दी थी कि
अचानक वो गलतफहमी की दीवार जिसकी नींव
कुछ दिन पहले रखी जा चुकी थी,
जो आज पूरी सी हो गई थी,उससे ठोकर खाकर
उनका रिश्ता मुंह के बल गिरा....
और शायद उस ठोकर के चोट से
दूरी बही थी उस दिन....
रिश्ते ने तो उसी पल दम तोड़ दिया था,
वो ही पागल थी जो आज तक
इस सच को अपना नहीं पा रही थी....
बचता भी कैसे ??
कोशिश सिर्फ एक ने ही की थी...
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