जो पी लिए हमने दर्दों के दो जाम,
समझ में आने लगे इस दुनिया के सारे निज़ाम...।-
तेरे पलकों कि ओट में राहत भरा निज़ाम हैं
तभी ये कलम तेरी दिलकश यादों की ग़ुलाम हैं
निमिशा कुर्रे-
निज़ाम-ए-हालात कुछ इस क़दर बदले है साकी
बदहज़मी हार के बदले जीत की ज्यादा है-
निज़ाम कभी भी बताये नही जाते,
वक़्त आने पर सब
खुल जाया करते हैं !
नेश शायर-
मैं कैसे कह दूं मेरी मोहब्बत बेअसर हो गई है...
मैं जब भी रोया हूँ उसको खबर हो गई है..!!-
मेरी इस खामोशी की आवाज़ जाओ..
एक सवाल है मेरी ज़िंदगी तुम जवाब बन जाओ..!-
मैं इतना मुतमईन हो चुका हूं कि
कोई आजाए तो ख़िताब-ए-मोहब्बत ,
चला जाए तो निज़ाम-ए-कुदरत ❤️
-
आँखें कहीं दिमाग़ कहीं दस्त ओ पा कहीं
रस्तों की भीड़-भाड़ में दुनिया बिखर गई...-
ये कुदरत का निज़ाम...
मुझे आज तक
समझ नहीं आया
की क्यों मैं तुमसे
बात कहना
कुछ और चाहता हूँ
मगर अक़्सर तुम्हारे
जवाबों का रुख देख!!
कह कुछ और जाता हूँ....
-