तुमने हुस्न को जागीर समझा है
अपने लिखे को मीर समझा है
तुम ख़ामख़ाह पड़ी हो इस झंझट में
जब हमने तुमको अपनी हीर समझा है-
यादों की ये जागीर अब संभलती नहीं मुझसे
तू नहीं है मगर तासीर तेरी मिटती नहीं मुझसे
!!!-
कह दो उनसे वो जो
तलवारें ताने बैठे हैं
'हिंदी' है 'तिलक' वाले भी
और जो 'टोपी' लगाये बैठे हैं;
इसी माटी से बने है दोनों
इसी माटी की खाते हैं
बरसती है जब बदरा माटी पे
दोनों ख़ुशी में गाते हैं;
जितना चोटी का है
उतना दाढ़ी का भी
हिन्दुतान तेरा है
हिदुस्तान मेरा भी;
माना वो अहल-ए-सियासत हैं
सियासत करने बैठे हैं
हमने बेचा नहीं हिन्दुतान
वो बोली लगाने क्यों बैठे हैं;
बंटने ना दो इस 'ज़ागीर' को
यह तेरी-मेरी नहीं 'हमारी' है
गलती सियासतदानों की नहीं
यह तेरी, मेरी और 'हमारी' है
- साकेत गर्ग-
उसकी कमी अब मुझे खलती नहीं
वो जागीर नहीं मेरी, ऐसा लगता नहीं
वक़्त के चलते *मुख़्तलिफ़ हुये, ग़म नहीं
कीमती यादों का साथ है ये भी तो कम नहीं
हाथ थाम ना सके एक-दूजे का ग़म नहीं
साथ बीते लम्हों के साथ जीने का ग़म नहीं
*मुख़्तलिफ़ = अलग / जुदा-
यादों में इक सुंदर सी तस्वीर होती है
हर पल रहती पास, ऐसी तक़दीर होती है..!
कैसे भुलाएँ जीवन की जागीर सी होती है
ख़यालों में मोहब्बत की ऐसी तासीर ही होती है..!!-
मैने अपनी जाग़ीर तुझे सौंप दी ,
बता अब कितना कर्ज़ चुकाना पड़ेगा उसे वापस पाने के लिए ।-
मत समझ उसे अपनी जागीर ऐ दोस्त,
ये ज़िन्दगी है रोज़ नए इम्तेहान लेती हैं,-
कम नहीं जहां में प्यार मेरे दोस्त बस ढूँढने वाली नज़र चाहिए।
जो प्यार को एक बार समझ जाता हैं उसे वो उम्र भर चाहिए।
कब तक कोई अकेला ही ज़िंदगी बिताए इस ज़िंदगी में यारों।
हर किसी को ताउम्र साथ रहने वाला एक हमसफ़र चाहिए।
जो हमारे इस दिल की बातों को "बिन कहे" ही समझ जाए।
हम सब को ओ साथी ऐसा ही एक प्यारा सा दिलबर चाहिए।
कि बस हम उनके लिए तड़पे और उनको हमारी कदर न हो।
इश्क में हमें महबूब हमारा हमारी तरह ही "बेसबर" चाहिए।
आज आए और दिल बहलाकर सपने सजाकर कल चला जाए।
चार दिन की ख़ुशहाली वाला नहीं, सनम हमको ता उमर चाहिए।
उसके बाद कोई और न दिखे मुझको और न देखना चाहूँ मैं कभी।
जब भी देखूँ वो ही दिखें ओ मेरे रब्बा मुझको ऐसी नज़र चाहिए।
उसकी खोज ख़बर मुझे मिलती रहे तो दिल को करार मिलता रहेगा।
हर पल हर लम्हा उसके साथ क्या हो रहा, मुझको ख़बर चाहिए।
बे रास्ता बे मंज़िल बे इश्क़ चलना गँवारा नहीं है मुझको "अभि"।
जो उससे शुरू होकर उस तक ही ख़त्म हो, ऐसी डगर चाहिए।-
इतनी कमजोर नहीं , जो एक ठोकर से बिखर जाऊँगी मैं
आर-पार हूँ शीशे की तरह , फिर भी बाहर हूँ तेरी समझ से मैं
कोशिश भी मत करना समझने की मुझे, परे हूँ तेरी पहुँच से मैं
मेरी शराफत को, मेरी मजबूरी बताने वाले दूर रहो मुझसे
बता रही हूँ,सुन ले इस बार, शायद अगली बार सुनने को तुम बचो ही ना..
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Jageer bana lo apni....
Hum kahi khoyenge nahi......
Tumhare saath rahenge
To kabhi royenge nahi.......
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