QUOTES ON #चाँद

#चाँद quotes

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6 NOV 2020 AT 6:34

अगर तुम चाँद होते तो मैं रोशन रात बन जाती 
अगर होते कमल तो बन सबा ख़ुशबू को बिखराती 
जो होते ख़्वाब तो पलकों को मैं खुलने ही ना देती
मगर तुम वो पहेली हो जिसे मैं बूझ ना पाती

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23 JUL 2019 AT 21:54

कभी छूने तो कभी पाने की ख़्वाहिश
चाँद को है अपना बनाने की ख़्वाहिश

अधूरा है मिल्कियत-ए-चाँद पे फैसला
है दावेदारों को आजमाने की ख़्वाहिश

है कितना प्रेम एक सितारे को चाँद से
इश्क़ में है बस टूट जाने की ख़्वाहिश

दरिया-ए-इश्क़ है हसीं निगाहें उसकी
ताउम्र के लिए डूब जाने की ख़्वाहिश

ख़त-दर-ख़त जिसे अपना लिखा मैंने
बस इक ख़त उसे पढ़ाने की ख़्वाहिश

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11 MAR 2020 AT 18:53

उसने कहा... तुम छू लो ज़रा उस चाँद को!
फिर... मैंने भी, भर के अपनी नज़रों में उन्हें
निहार कर अपने चाँद को छू लेने की हाँमी भर दी...

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13 JUN 2019 AT 11:19

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7 APR 2019 AT 0:29

चाँद सा मुखौटा डाल, वो छत पर जो आती है
हाय, क्या अदाकारी से वो हमसे नज़रें चुराती है
चाँद भी दागों के चंगुल में फँसा नज़र आता है
मोहतरमा तो यहाँ चाँद को भी मात दे जाती है

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8 MAY 2019 AT 2:26

फूड डिलीवरी का इंतज़ार करते
महानगर की बारिश में कुछ बच्चे
अक्सर रात की भूख में
खिड़की से झांकता चांद रोटी समझ
दूध की कटोरी में डाल
खा जाया करते होंगे.

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24 MAR 2019 AT 11:49

पानी हमेशा शांत बहता था उसे लहर कर दिया
देते हैं दुआ जिसे, उसने दवा को ज़हर कर दिया।

सूरज की किरणें गिरती थी सीधे घर के आंगन में
ऊंची इमारतों ने मेरे छोटे गाँव को शहर कर दिया।

अकेला था भला था, मोहब्बत हुई है जबसे उनसे
नींद गायब है आँखों से, बेचैन हर पहर कर दिया।

शांत था मोहल्ला मेरा, सब रंग सबके घरों में थे
अब भगवा हरा अलग करके सब कहर कर दिया।

बांधे रखती थी एक नदी सभी शहरों को अब तक
बांट कर उसे अब, कस्बों की अलग नहर कर दिया।

ये चाँद साथ रहता था पहले रात भर ही के लिए
अब साथ उठता है मेरे, रात मेरी हर सहर कर दिया।

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1 JAN 2019 AT 22:46

हिज़ाब बादलों का ओढ़ा है चाँद ने
मैं दीदार चाँदनी का करूँ कैसे!!

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21 DEC 2018 AT 20:15

तुम रहती हो, तो सब सरल रहता है
ये टूटा हुआ मकां भी महल रहता है

चलती हो तो ये चाँद साथ चलता है
हर इक सितारा भी ग़ज़ल कहता है

निकला ना करो, यूँ सज-संवर कर
तेरे नूर से सूरज को ख़लल रहता है

कहता हूँ तुमको मल्लिका-ए-जहाँ
तो ये जहाँ मुझको पागल कहता है

छुआ था जो तूने, इक रोज़ मुझको
असर इत्र सा, साथ हर पल रहता है

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3 MAR 2019 AT 22:10

चाँद की चाँदनी में
डूबकर ये रात
मुझसे मेरा हाल पूछती है
जैसे जानबूझकर मेरे
एकाकीपन पर उपहास कर रही हो
कभी खिलखिलाकर हँसती है
तो कभी आकर
कानों में शोर करती है
ऐसे जैसे अपने भाग्य से
मेरे मन पर ईर्ष्या
उत्पन्न करने में प्रयासरत हो
मैं भी झुंझलाहट में
उससे कहता हूँ कि
अमावस के रोज मिलूँगा तुमसे
अपने एकाकीपन और
तुम्हारे भाग्य की सजीव
स्मृतियां लेकर, देखते हैं
कौन टिकता है तब तक
तुम्हारा भाग्य या फिर
मेरा एकाकीपन....

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