क्यों आज भी हमारी शख्सियत
उन शरीफ लोगों में गिनी जाती है
जिनके ईमान पर अक्सर
उनके अपने सवाल कर बैठते हैं-
एक लड़की थी
कुछ नाज़ुक सी
एक लड़का था
कुछ अलग सा
दुनिया से हारे
और झूठ से मृत
आँखों मे काजल आँसू के
वह रोज़ उसकी आँखों से पोंछता था
रोज़ उसके चेहरे पर सालों से छिपी मुस्कान
वह खोज निकालकर वह उसके चेहरे पर टाँगती
रोज़ एक झगड़ा
रोज़ एक माफी
प्रेम नहीं था इनके बीच थी एक अलग यारी
दो जलते इमामों के झंडों की ये दस्तूर
ये फिर एक प्यार के टूटने की कहानी
जहाँ कई सालों पहले की सर की पगड़ी
उस के होठों पर पुरानी यादों की कहानी बन गयी
जहाँ कई सालों बाद
पुराना बुरखा उसके आँखों में भरते आँसू बन गया
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वक़्त कहता हैं के मैं आज भी वही हूँ...
कुछ बदला हैं तो वो फ़क्त इंसान का ईमान..-
इमाम अली नक़ी (अ.स.) के कथन
लोगों से इज़्हारे मोहब्बत (प्रेम प्रकट)
करो ताकि तुमको भी दोस्त रखें ।
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वजन यूँ हीं नहीं आया है मेरे अशआरों में
दिन रात कुंटे हैं इश्क़ के दश्त-ए-इमाम हम-
सब लुटा डाले है जो कर्बोबला में
दीन के खातिर जो सर झुकाते नहीं
दीन को है बचाया अपने सजदे से
हम उस हुसैन(स.अ.) को भुलाते नहीं
-आकिब जावेद
#ख़ेराज-ए-अकीदत #इमाम #हुसैन(स.अ.)
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या अल्लाह ऐसी भी इबादत की है ख्वाहिश,
उनका इमाम बनूं और मेरी दुअाओं में आमीन वो कहें।-
जो ज़ुबां शह की वही शह के भरे घर की ज़बां
आइने बोल ही सकते नहीं पत्थर की ज़बा
याद माज़ी की दिलाती है सरे करबोबला
दहने शब्बीर में हम शक्ले पयंबर की ज़बा
शह ने सेराब किया दे के लहू गर्दन का
प्यास से खु़श्क हुई जाती थी की ख़ंजर की ज़बां
हुज्जते हक ने सितमगारो के दिल काट दिए
तेगे़ हैदर बनी मैदान में असग़र की ज़बां
शह के बेशीर ने होंठों पे ज़ुबां क्या फेरी
देखिए मोम हुई जाती है पत्थर की ज़बां
मुस्कुरा कर सर ए मैदान अली असगर ने
काट दी सब्र के खंजर से सितम गर की ज़बां
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