अजीब ज़ालिम दुनिया है...
जो हमारी रातों की निंद उड़ा देते हैं,
वो रातों को कितने चैन से सो जाते हैं...-
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काश पैसों से जज़्बात के मोल खरीदे जा सकते...
वरना जज्बातों की कदर और अहमियत दोनो ही नहीं मिलती-
कुछ बातें ना कहे भी समझ लेनी चाहिए..
और अगर कहने से भी बातें समझी न जा रहीं हो तो न कहना ही बेहतर है,
उससे उस इंसान का समय भी बचता है और इज़्ज़त भी...-
कहते हैं...
लोग तो कहेंगे, लोगो का काम है कहना
पर जब अपने कहने लगे,
फिर उसका क्या?
वो तो कभी किसी ने कहा ही नहीं....-
ज़िंदगी कितनी जल्दी बदल जाती है,
जब एक लड़की बियाह कर दूसरे घर आती है..
बहु होती है उस घर की,
पर पहचान पराई घर से की जाति है..
नाम, घर, लोग सब बदल जाता है
अपना है कौन यहा? बस ये पता चल नहीं पाता है
"बोहोत खुश हु मै मां" हर दिन यही झूठ दोहराया जाता है,
ताकि लोग ये न कहे की "दोष लड़की में है, कुछ आता ही नहीं इसे" सब दफन कर दिया जाता है..
कितने खुश है हम? कितने खुश थे तब? ये एहसास अब है ही नही
ज़िंदगी गुजारनी है अब, जैसे भी हो, आगे का कुछ भी.. पता नहीं...-
एक ज़माना ऐसा था जब बाहर रहने को तरसते थे...
अब,
घर जाने को तरसते हैं...-
आज खुद को शीशे में देखा तो ये मेहसूस हुआ,
खुद की कदर खुद को ही करनी चाहिए,
वरना लोग दिखावे का भी हिसाब मांगते है...-