18 MAR 2018 AT 7:05

कॉफ़ी की टेबल पर रखी हैं
अधूरी सी ख़्वाहिशें
कुछ मुड़े कागज़ के टुकड़े
थकी हुई सी उम्मीदें
धूल से ढके सपने
तभी वेटर आवाज़ देता है
मैम आपकी कॉफ़ी
और हां अधूरी मैं
कभी टेबल के उस ओर तुम हुआ करते थे
टकटकी लगाए देखते थे मुझे
मैं भी पलके झपकना भूल जाती थी
तुम्हारे होठों से आज़ाद होकर वो मुस्कुराहट की तितली
मेरे दिल के बगीचे में फुर्र से उड़ती थी
मेरी कविताओं में नुक़्ता चीनी करना
तुम्हारा पसंदीदा शौक़ था हैं ना
देखो घंटों से लिख रहीं हूँ एक कविता पूरी नहीं होती
छोड़े जा रही हूँ ये कागज़ कलम
तुम इन्हें पूरा कर देना
कॉफ़ी ऐसे भी अच्छी है
लेकिन काश टेबल के उस ओर तुम होते
तो बात ही कुछ और होती....

- Swati_Gupta