जब चांदी झलकने लगे बालों से
और सोना झुर्रियों से तुम्हारी,
जब देह डगमगाने लगे, थाम लेना तब हाथ मेरा...
मुझसे मिलना तो उस उम्र में मिलना,
जब तुम्हारे हाथों की कंपन
पकड़ न पाएंगी दामन कोई
और निगाहों से दूर हो जाएंगे चेहरे सभी...
तुम मुझको सुन लेना ख़ामोश लफ्ज़ों में
सुबह की गुनगुनी धूप में, ज़िंदा लोगों में,
वो लोग जो गुमनाम हो गए हैं,
उनका नाम पूछकर तलाश लेना मेरा पता
अगर ना मिलूं फिर भी
तो सदाएं भेजना , उन गलियों में
जिनको रोशनी की हिदायत दी है तारीकी ने...
मिलना कि जब बेबात छलछलाने वाली आंखें
सहरा बन चुकी हों और
देखते ही तुमको घन बरस-बरस जाएं ...
कुछ पलों के लिए ही सही बस एक दफा
ज़िंदगी से ये इल्तिजा मनवा लेना...
जानां, तुम्हारी मुस्कान की सरगम से
धीमी होती धड़कनों का साज़
फिर सुनाई देने लगेगा।
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