17 MAY 2018 AT 16:06

आज फिर मन को मेरे ठेस लगी।
निःशब्द-सी हुई मैं,
कुछ कह न सकी।
तोलने लगी सामने खड़े व्यक्ति को,
इंसानियत के तराजू में,
क्यूँ आँखों में आंखें डालकर,
ग़लतको ग़लत कह न सकी ।
ऐसा कब तक चलेगा,
ख़ुद के व्यवहार पर
बहुत ग्लानि होती है।
खोमोशी ओढ़े ठहर जाती हूँ
उफान लेते मेरे भावों को बहुत पीड़ा होती है।
मेरा खामोश रहना ,कोई प्रतिक्रिया न देना,
कितना सही है नहीं जानती,
पर है कुछ जीवन-मूल्य मेरे,
उन का महत्व मैं हूँ बख़ूबी पहचानती,
विनम्र और सहज रहती हूँ,
कोई अपशब्द नही कहती हूँ,
अपने शिष्टाचार से बार बार,
सामने वाले की मलिनता को,
तुच्छ महसूस करा देती हूँ।
इतने पर भी नही बदलता ग़र उनका व्यवहार,
तो दूरी बनाने में हरगिज़ नही हिचकिचाती हूँ,
मैं दूर हो जाती हूँ,
बहुत दूर हो जाती हूँ।।

- Sushma RKumar