14 DEC 2017 AT 22:07

वर्षा की सुरीली तान पर नाचते हैं मोर
झूमती है डालियाँ चमकते हरे पेड़ों की
सोंधी सुगंध मिट्टी की फैलती है हर ओर
और आती हैं आवाजें छुपे मेंढकों की

खुली खिड़कियों से आता है बूंदों का शोर
और सुनाई पड़ती है सरसराहट झुरमुटों की
बारिश की ठंडक से खिल उठा हर पोर 
हवा आई हो जैसे पर्वतों की

रहस्यमयी रातें और बादल घनघोर
बातें कुछ पुरानी उन आदतों की
जिनसे बंधी है दिल की डोर
चंद यादें उन पुरानी सोहबतों की

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