30 JUN 2017 AT 12:20

"तुमने दरिन्दगी ऐसे की लहुलूहान सबका दिल हुआ ,
तुमने नोचा उसका ज़िस्म की शर्मशार ये वतन हुआ ,
वो बिलख-बिलख कर रोयी ,पर बस अधमरा जान के छोड़ दिया,
चिख-चिख करके पुकारी तुम्हें ,पर तुमने सुन के भी अनसुना कर दिया

अब अगर बात है सज़ा की -
तो तुम्हे सज़ा हो और ज़रूर हो ,
पर उससे पहले ,
तुम्हे सुनने को मुंसिफ भी और लोग भी हो ,
पर हाल तुम्हारा ऐसा हो ,
कि ना पश्चाताप के लिये तुम्हारे पास अश्क हो,
और ना इजहार करने के लिये शब्द हो |"

- Surnayak Shukla