Surnayak Shukla   (Surnayak Shukla)
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Joined 2 May 2017


Joined 2 May 2017
26 JUN 2023 AT 23:18

पता नही बहुत कुछ है बोलने को,
बोल देंगे तो आपकी आदत छूट जाएगी।
एक अरसे से भटके है तेरे दीद को,
बिन चेहरे के-
चाँद जो ज्यादा निखरा आप बेपर्दा हो जाओगी।
छिप के रहना अब एक और जन्म,
जो मिल गयी अबकी -
तो हमारी सांसे छूट जायेंगी।

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29 MAY 2022 AT 21:43

एहसास मोहब्बत के, जो छुपा बैठा था ये दिल |
किसी रोज मिलो तन्हा, हम तुमको सुना देंगे।
तुम साये से हो मेरे, क्या ढूढंते हो रातो में?
निकलो तो उजालो में हम तुमको दिखा देंगे।

जो पूछते हो अक्सर किस सपनो की दुनिया मे हो?
मिलो तो तुम हमको, चांद रातों में ले जाएंगे|

अफ़साने जो गढे थे हम -
कभी जो तेरे खयालों में,
तो अब लोग हमे क्यो पागल दीवाना कहते है ?
अरे! एक दिन तो मिलो कातिल हर हद से गुजर जाएंगे।

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8 JUN 2021 AT 17:27

शायद बहुत मुश्किल होता है साथ निभाना,
उससे आसान होता है छोड़ जाना?
हँसना-रोना, खोना-पाना बस एहसास भर ही तो है?
क्या इतना आसान होता है एहसासो का मर जाना?

हाथ उठा के हर रोज छोटी सी खुशियो का मांगना |
हर छोटी-छोटी बातों पर अपनो से रूस जाना |
रूठना-मनना, चिढ़ना-चिढाना यही तो जिंदगी है शायद?
पर बहुत शूल होता है अकेले जिंदा रह जाना !

अब के गए तो लौटे भी नही?
क्या कही ऐसा भी होता है बिना बोले जिंदगी से चले जाना।

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4 JUN 2021 AT 18:30

चलो जबतक तुममे जान बाकी है,
जालिम का इंसानो से द्वेष बाकी है,
ईमान में जबतक इंसान बाकी है,
गरीबो का तुममे विश्वास बाकी है,
चलो तबतक जबतक खुद में जान बाकी है।

खुनो में पुराना उबाल बाकी है,
क्रांति का जबतक उदघोष बाकी है,
पिछडो और अगड़ों का फर्क बाकी है,
ये काला वो गोरा ये सामाजिक दंश बाकी है,
चलो तबतक जबतक खुद में जान बाकी है।

मुट्ठी भर ही तो है जालिम, तो क्या फर्क है?
इंसाफ अबकी बार करो क्या क्षेप बाकी है?
हर-हर, बम-बम नाद करो पूरा हलाहल बाकी है,
वीर-भोग्य-वसुन्धरा बस अब यही अश्वमेध बाकी है।

चलो तबतक जबतक खुद में जान बाकी है......

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21 APR 2021 AT 20:40

खूनी,चोर-उच्चके, डकैतों की देखो फौज यहा
किसी को तो समाज का यहा अभिमान होना चाहिए?
हर-बार, बार-बार, घात पर घात सहे?
कबतक युधिष्ठिर सा धैर्यवान होना चाहिए?
आज हम कल आप ?
क्या शाशन में सबको यहाँ घनानंद चाहिए?

नही!

हरेक सहस्त्रबाहु के लिए सिर्फ एक परशुराम होना चाहिए।
मानवता के रक्षण के लिए सबको 'समान' होना चाहिए।
विधि का हो दण्ड, या हो सिर्फ दण्ड ही हो दण्ड-
हरेक रावण के अंत के लिय बस एक 'राम' होना चाहिए।

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27 MAY 2020 AT 17:08

बहुत कुछ कहना है बस कह नही सकते....
समझना - समझाना बहुत आपसबो को -
अफसोस समय कम है अब और रुक नही सकते!
आंख बंद कर सोचते है क्या बोले जो अब काफी हो...
आशांति समेटे मन मे फ़िर भी कुछ कह नही सकते...

वक़्त, साथ सब मुकर्रर था फिर भी कुछ न कह पाए...
आज बोले, कल बोले बस 'कल' के चक्कर मे रह गए...
सुनो बहुत आसान है अब तुम्हारा मेरा साथ रहना...
हाथ छूटें तो छुटे! हर कदम बस 'यू' ही इस रिश्ते से बंधे रहना...

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27 MAY 2020 AT 17:07

बहुत कुछ कहना है बस कह नही सकते....
समझना - समझाना बहुत आपसबो को -
अफसोस समय कम है अब और रुक नही सकते!
आंख बंद कर सोचते है क्या बोले जो अब काफी हो...
आशांति समेटे मन मे फ़िर भी कुछ कह नही सकते...

वक़्त, साथ सब मुकर्रर था फिर भी कुछ न कह पाए...
आज बोले, कल बोले बस 'कल' के चक्कर मे रह गए...
सुनो बहुत आसान है अब तुम्हारा मेरा साथ रहना...
हाथ छूटें तो छुटे! हर कदम बस 'यू' ही इस रिश्ते से बंधे रहना...

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14 JAN 2020 AT 18:46

सुनहरा, चमकता, पर अकेला है चाँद...
झिझकता, शर्माता, हर रोज और निखरता है चाँद...
ये बिजली की कड़कन, घने- घने से ये बादल-
घने से अंधेरे में हर वक़्त, अकेले निकलता है चाँद........

इंतजार है, तपन है, जलन है, या है कोई श्राप?
कोई कहता, कोई सुनता, कोई लिखता है 'आज'
बताओ तो रुक के जरा, हमे - 'ए चाँद' !
की हो कातिल,हो मुंसिफ,या हो अपने चांदनी के क्या गुनहगार?
सुनहरा, चमकता हमेशा, पर अकेला क्यो है चाँद?

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7 JAN 2020 AT 18:13

टुकड़ो टुकड़ो में जीता हूँ,
लहू के घुट मैं पीता हूँ।
चलती जा रही है रुक रुक के ज़िन्दगी,
अफसोस यही बस करता हूँ।

लोगो का मिलना चुभता है,हर वक़्त घुटन बस देता है।
अब जो पूछते है लोग हालचाल-
एहसान बराबर लगता है।

'मिलना'-
अब बस कुछ दिन में है-
ऐसा 'वो' रूककर बोले थे,
और नज़र झुकाकर रखे थे।

अब है तो बस यही सवाल मेरा
हमारी ख्वाहिशो की कातिल-
क्या उनकी झुकी नजरे थी,
या वो हमारा आखिरी मिलना था?

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30 DEC 2019 AT 20:17

कसम खा कर, तोड़ कर, क्या बस जिम्मेदार मैं ही हूँ?
आधे रास्ते साथ चलकर, थक गए, लगता तो कुछ ऐसा ही है?
वफ़ा वफ़ा हरसांस वफ़ा, क्या बेवफा अब मैं ही हूँ ?
जाते हो जो साथ झटककर, क्या तलबगार बस मैं ही हूँ?

सिसक-सिसककर, सिसकियों के बाद गुलज़ार मैं तो हूँ|
टुकड़ो में टूटकर- बिखरकर, बाबजूद इसके हथियार तो हूँ?
कट-कटकर आख़िरी कतरे तक बहने दो मुझे -
अंजाम गर ये था तो फिर यही सही -
शायद इतने से भी अभी दिल भरा नही।

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