surbhi agrawal   (Surbhi agrawal)
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Joined 24 August 2019


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Joined 24 August 2019
9 HOURS AGO

फरियाद करते रहेंगे हम,जब तक पूरी न हो,
बनी रहेगी बस तब तक,जब तक तुम न हो।

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13 HOURS AGO

मिल गया वो सब मुझे, जो भी मैंनें चाहा,
राह में न था काँटा,फूलों से जमीं बिछ गई।

मेरी पसंद लाजबाब ,नाज इस पर है मुझे,
ढूँढा हमसफ़र ऐसा मैंने,बजी जग में शहनाई।

प्यार की मूरत,गुणों की खान,सुंदरता बेमिसाल,
मुस्कुराहट चेहरे पर सदा,मन ही मन मैं शरमाई।

शबाब और ख़्बाब की न रही, जरूरत जैसे,
मेरी पसंद पर सारी दुनिया ने,दी मुझे बधाई।

हर ओर चर्चा-ए-इश्क पर था, बाजार गरम,
न हुआ कोई ऐसा,जिससे हो इसकी भरपाई।
-Surbhi agrawal

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YESTERDAY AT 13:03

शब्दों का मिलन कराकर,सबको एक सूत्र में बाँध दिया,
शब्दों का संसार बनाकर,एक परिवार का एहसास करा दिया।

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23 APR AT 13:19

प्यार भरी बातें सुनकर मेरी,चेहरा गुलाबी तेरा हो गया,
जियेंगे मरेंगे साथ साथ दोनों,धडकनों में भी भूचाल आ गया।

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23 APR AT 13:11

सुर भी फीके लगे मेरे,तेरी चूडियों की छनछन में,
सरगम भी बेताल लगे,सुरीली धुन निकले जो इन से।

सुहाग की निशानी ये,हाथों में सजी देखूँ सदा तेरे,
लाल लाल चूड़ा,सदा सुहागीन रहो निकले दिल से।

एहसास हो जाता आने का तेरे,बजतीं हाथों में जब,
ऐसा क्या है इस छनछन में,आवाज न आये साँसों से।


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22 APR AT 12:24

एक हुआ तो दस होते,दस होते तो सौ की इच्छा,
तुम्हारी जीवनसंगिनी में हो,सब अच्छा ही अच्छा।

जिस तरह कदम से कदम मिला,संतोष का घर है मन में,
इरादे नेक बनें दोनों के,सच्ची लगन से रहे रास्ता पटा।

तुम और मैं,मैं और तुम,बक्त के साँचें में ढल जायेंगे,
अपने हमसफ़र की वाद-ए-बफा पर न क्रोध न गुस्सा।

हर ओर चर्चा ही चर्चा ,तुम्हारी जीवनसंगिनी कहला रही,
आईना ही आईना बनूँ तेरा,तराशा हुआ जैसे गहना।

मिला दूँगी खाक में सब,जब आयेगा राह में काँटा,
राँझा की हीर बनकर चलूँ,तेरी जीवनसंगिनी का मन सच्चा।
-Surbhi agrawal



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20 APR AT 13:46

जान न पाया महक फूलों से या तेरे वदन से आई,
मन मेरा मुस्कुराने लगा ,जब तू समीप मेरे आई।

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20 APR AT 11:44

किस क़दर ज़माने ने बख़्शे थे रिश्ते हमे,
अपनापन शायद, किसी के मन में न था।

समय रहते बावफ़ा लोग भी,बेवफ़ा हो गये,
नज़र लग गई ,इस जमाने को क्या हो गया।

जब परेशान थे, तो लोग हमसे बहुत खुश थे,
आँधी के जैसे बिखरे,ओस जैसे फ़ना हो गया।

अपने तो दिल में सदा रहते आईने की माफ़िक,
पछता रहा हर शख्स,मौसम ने रूख जो बदल दिया।

अपनों की ख़ामोश मिज़ाजी जीने नहीं देती हमें,
इस पराये दौर में जीना बहुत मुश्किल हो गया।

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19 APR AT 16:19

दोनों लैला मजनूँ,अपनी प्रेम कहानी के लिख दें आओ दो अक्षर,
याद करेंगे लोग हमे भी,देख लें एक दूजे को नैनों में भरकर।

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19 APR AT 16:13

भीड़ में गुम होने का न था हमें गिला,
हाथ पकड़ न छोड़ना,बिरासत में मिला।

भटककर जायेंगे कहाँ,दुनिया तो गोल है,
जहाँ से शुरू,बहीं पे खत्म हुआ ये मेला।

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