गर सुख गया हो दिये सा मन,
मौसम है स्नेह के तेल चढ़ा लेना..
गर पर्याप्त हो ढ़कने को तन,
किसी और की लाज बचा लेना,
है आज रात जो चाँद को छुट्टी,
उसके भरोसे जो है, उनको दीये दिला देना..
रहेगा न आज कोई कोना अंधेरा,
आप बस अपना दायरा बढ़ा लेना,
राम मिलेंगे आपसे झूम गले,
आप भरत के भाव बसा लेना..
गर सुख गया हो दिये सा मन,
मौसम है स्नेह के तेल चढ़ा लेना..
©सन्नी कुमार ‘अद्विक’
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