लिखना शायद भूल गया हूँ यूँ याद मैं रह नहीं पाता हूँ ऐसा तो नहीं कहीं झूठ रहा हूँ सच्चा भी रह नहीं पाता हूँ कितने ही ज़ख्म ख़ामोश रहे हैं वो एक क्यों सह नहीं पाता हूँ बरसों तक खुश्क़ रहा पलकों से फिर सोचा बह ही जाता हूँ क्या करूँगा दिल में जगह बनाकर ये सोच अब लिख नहीं पाता हूँ