Sunita Sayal   (Sunita Sunil "रंगरेज़"✍️)
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वफ़ा के नाम पर सज़ा दे गया
मेरी लम्बी उम्र की दुआ दे गया
Joined 7 July 2017


वफ़ा के नाम पर सज़ा दे गया
मेरी लम्बी उम्र की दुआ दे गया
Joined 7 July 2017
27 FEB AT 22:18

मन के भेद पहेलियों में मत पो

ज़िन्दगी का आईना तुम खुद हो
अंधेरों से गुजरकर कुछ तो सिखो

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23 FEB AT 9:40

अब ऐसी कोई डगर नहीं
जहां महिलाओं के पदचिन्ह नहीं

कई बाधाओं से जम कर लड़ी
संस्कृति की चादर ओढ़े रही खड़ी

अब दुनिया की तस्वीर बदल सी गई
देख लो ... नामुमकिन कुछ भी नहीं।

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23 FEB AT 7:57

जब पड़ी वक्त की तपती धूप

कांटों के संग खुबसूरत फूल
आदमी का बदलता स्वरूप

हर तरफ दिखती हवस की लूट
इन्सानियत पर चढ़ गई धूल

कलम भी नहीं लिख पाती मूल
चकाचौंध में लुप्त हो गई नूर ।

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21 FEB AT 5:26

हर वक्त इम्तिहान में
कब तक रहें मझधार में

इक स्वप्न लिए नेनन में
अब तक हैं इस भम्र में

जिम्मेदारी के दल-दल ने
हम..ज़िन्दगी के सफ़र में

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6 OCT 2023 AT 7:50

नींद आती ही नहीं है
ख़्वाब क्या देखें कहो
चैन दिल पाता नहीं है
अश्क़ों को क्या रोकें कहो
ख़ुद किया हर ज़ख्म ताज़ा
ख़ुश कहाँ रह पाएंगे
हो गया दिल ग़मज़दा सा
किसको ये बतलाएंगे

वक़्त थमता ही नहीं है
मुड़ के हम देखें किसे
दर्द ढलता ही नहीं है
बचते हम क्या रंज से
ख़ुद किया था दर्द साझा
दिल को क्या भरमाएंगे
हो गया दिल ग़मज़दा सा
किसको ये बतलाएंगे

साहिलों की बात की थी
डूबता है दिल मेरा
मंज़िलों की आस की थी
टूटता है दिल मेरा
ख़ुद किया था हर तक़ाज़ा
ख़ुद को क्या झुठलाएंगे
हो गया दिल ग़मज़दा सा
किसको ये बतलाएंगे

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6 AUG 2023 AT 18:06

किस से रंगे हम अंग

कोई काटते हमारे पंख
नज़ारों से हो जाते दंग

कौन देगा उन को दंड
हवाओं में घुली है गंध

रोज़ होती उन से जंग
जीवन का है यही मंत्र

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28 JUN 2023 AT 13:01

हर वक्त एक फ़रियाद उठती है
घड़ी की सुई पीछे..क्यूं नहीं चलती है ,

जब प्यार की यादें तड़पाती है
आंखों से अश्कों की धार नहीं रूकती है,

हवा जब रूख़ बदल कर चलती है,
मुड़ के देखो जरा..तबाही नहीं थमती है।

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27 DEC 2022 AT 11:05

हमारी कहानी की किताब में...
पन्नों पर काली स्याही ज्यादा है,
आंखों पर रंगीन चश्मे हैं..
दुनिया की नजर काली ज्यादा हैं।

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4 DEC 2022 AT 9:27

Wedding Anniversary My ❤️😭

ज़िन्दगी में तुम नहीं, तो ग़म रहेंगे आज से
इक अधुरी उम्मीद में,जलेंगे हम चराग़ से

ऐतबार की इंतिहा हुई,इंतज़ार की इंतिहा हुई
इश्क़ की न जो इब्तिदा हुई,हमसे भी नहीं इल्तिजा हुई
ज़िन्दगी में तुम नहीं ,तो हम घुलेंगे आज से
इक अधुरी उम्मीद में,जलेंगे हम चराग़ से

इक सुबह नई,मांगते रहे,ना मिलेगी वो, जानते रहे
ख़्वाहिशें मेरी टूटती रहीं छूटती ज़मीं, हम थामते रहे
ज़िन्दगी में तुम नहीं,तो क्या जुड़ेंगे ख़ाब से
इक अधुरी उम्मीद में,जलेंगें हम चराग़ से

कसमें तोड़ कर तुम चले गए,खो के हौसले हम खड़े रहे
ना सुक़ून था,ना ही चैन था, छोड़ गए काम,जुनून से निभा रहे
ज़िन्दगी में तुम नहीं,तो बंद से हैं रास्ते
इक अधुरी उम्मीद में, जलेंगे हम चराग़ से ।

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3 DEC 2022 AT 17:02

पलाश की तरह बिखरी पड़ी हूं
तुम आ कर मुझे समेट लो ना।

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