Sukhbir Singh   (Sukhbir Singh Alagh)
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Joined 6 August 2017


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Joined 6 August 2017
7 JUL AT 14:20

मैं अब
ख़ुद से मिलना चाहता हूँ।

हर किसी से मिलते-मिलते
बस थक चुका हूँ।
जी रहा हूँ ज़िंदगी ऐसे,
जैसे दिन गिन रहा हूँ।

रोज़ काम पर जाना,
खाना खाना और सो जाना।
ऐसा लगता है जैसे
कोई मशीन बन गया हूँ।

मैं भी ये जीवन
जीना चाहता हूँ।
मैं अब
ख़ुद से मिलना चाहता हूँ।

कभी जो ख़्वाब आँखों में पले थे,
छोटे थे हम, पर सपने बड़े थे।
वक़्त की धूल ने धुंधला दिए सब,
फिर भी कहीं वो आज भी ज़िंदा खड़े थे।

मैं उन सपनों को
अब उड़ान देना चाहता हूँ।
मैं अब
ख़ुद से मिलना चाहता हूँ।

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3 JUL AT 13:02

कुछ लोग चले जाते हैं,
पर उनकी यादें ठहर जाती हैं।
याद करते हैं पिछले लम्हों को,
कभी रोते, कभी मुस्कुराते हैं।
कितना भी आगे बढ़ जाएं,
अपनी इस ज़िंदगी में,
जो बिछड़ गए अपने,
वो कभी भूल नहीं पाते हैं।
कुछ वक़्त गुजर गया,
बाकी भी गुजर ही जाएगा,
मरने के बाद ख़ुदा,
हम फिर से मिलना चाहते हैं।

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2 JUL AT 19:45

शब्दों से दोस्ती थी,
पर आज कल मिलने नहीं आते।
विचारों का सैलाब है मन में,
पर कागज़ पे उतर नहीं पाते।
ज़िंदगी में इतना उलझ गए हैं कि,
खुद से कभी मिल ही नहीं पाते।
गुज़ारते हैं वक़्त बस यूँ ही हर रोज़,
चेहरे पर झूठी हँसी सजा के।

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24 JUN AT 17:49

ज़िंदगी के इस दौर में,
हर कोई भाग रहा है।

हँसते चेहरे के पीछे,
अपना दर्द छुपा रहा है।

भरी महफ़िल में भी,
आज हर कोई अकेला है।

अलग दिन गुजर गया,
अब खामोशी में रात गुज़ार रहा है।

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11 JUL 2024 AT 8:06

आने वाला कल
आज ही डराने लगा है ।
हर कोई हमसे
अब दूर जाने लगा है।
दिल में करवाहट
इस कदर बढ़ रही है।
कि अब तो सब कुछ
साफ नजर आने लगा है।

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13 DEC 2023 AT 20:02

ਸਾਹ ਚੱਲ ਰਹੇ ਨੇ
ਦਿਨ ਗੁੱਜਰ ਗਿਆ
ਰਾਤ ਵੀ ਗੁੱਜਰ ਰਹੀ ਹੈ
ਕੀ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਬੱਸ ਇਹੀ ਹੈ
ਰੋਜ਼ ਇਹੀ ਸੋਚੀਦੈ

ਬਚਪਨ ਵਿਚ ਪੜਾਈ
ਜਵਾਨੀ ਵਿਚ ਕਮਾਈ
ਤੇ ਫਿਰ ਬੁਢੇਪਾ
ਕੀ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਬੱਸ ਇਹੀ ਹੈ
ਰੋਜ਼ ਇਹੀ ਸੋਚੀਦੈ

ਜਿਉਂ ਜਿਉਂ ਵੱਡੇ ਹੋਣਾ
ਆਪਣਿਆਂ ਦਾ ਦੂਰ ਹੋਣਾ
ਪੁਰਾਣੇ ਰਿਸ਼ਤੇ ਟੁੱਟਣੇ
ਤੇ ਫੇਰ ਨਵੇਂ ਰਿਸ਼ਤੇ ਬਣਨੇ
ਕੀ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਬੱਸ ਇਹੀ ਹੈ
ਰੋਜ਼ ਇਹੀ ਸੋਚੀਦੈ

ਬੰਦਾ ਚੰਗਾ ਕਮਾ ਰਿਹਾ ਹੈ
ਕਿੰਨਾ ਵੱਡਾ ਘਰ
ਤੇ ਕਿਹੜੀ ਕਾਰ ਤੇ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ
ਨਿੱਤ ਦੁਨੀਆ ਨੂੰ ਦਿਖਾਵਾ ਵਖਾਉਣਾ
ਕੀ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਬੱਸ ਇਹੀ ਹੈ
ਰੋਜ਼ ਇਹੀ ਸੋਚੀਦੈ

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6 SEP 2023 AT 22:21

अभी मैं हारा नहीं
बस सीख रहा हूँ

अपनी तकदीर खुद ही
इन हाथों से लिख रहा हूँ

जो ताने सुनाते है
अभी उन्हें सुनाने दो

मैं अपना सुनहरा भविष्य
इन खुली आँखो से देख रहा हूँ

अभी मैं हारा नहीं
बस सीख रहा हूँ

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3 MAR 2023 AT 12:35

तनखाह नहीं बस खर्चे बढ़े है
यूँ तो savings के चर्चे बड़े है
मेरे सपने दिल के किसी कोने में पड़े है
महीना पूरा हो गया है जनाब
हम अपनी तनखाह की राह देख रहे है

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21 FEB 2023 AT 15:41

सपने देखना, हिस्सा है जिंदगी का
पर ये पूरे भी हो, ये जरूरी तो नहीं।

दर्द हर किसी को, सहना ही पड़ता है
पर सब बयां करे, ये जरूरी तो नहीं।

रिश्ते तो बनते, बिगड़ते ही रहते है
पर ताउम्र रिश्ते साथ दे, ये जरूरी तो नहीं।

अलग वक्त जैसा भी हो, निकल ही जाता है
बिता समय हमेशा याद रहे, ये जरूरी तो नहीं।

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7 FEB 2023 AT 13:29

कुछ राज दिल के कभी बताए नहीं जाते
अपने किस्से जिंदगी के सुनाए नहीं जाते
लोग दवा के बदले मज़े ले लेते है
कुछ घाव होते है जो दिखाए नहीं जाते

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