पिस देता था पत्थरों कोअब खुद पिस रहा तूसमय का चक्र चलता निरंतर बिना थकेखोता बाजुओं का बलथा कभी अभिमान हर वक्त नहीं रहता सवेराहै यही अटल सत्यकर विचार सीखसींच बगिया जिसमे खिले फूलआने वाला काल करे यादक्योंकि ये इमारत ढह रही है। - Sudhir "धीर"
पिस देता था पत्थरों कोअब खुद पिस रहा तूसमय का चक्र चलता निरंतर बिना थकेखोता बाजुओं का बलथा कभी अभिमान हर वक्त नहीं रहता सवेराहै यही अटल सत्यकर विचार सीखसींच बगिया जिसमे खिले फूलआने वाला काल करे यादक्योंकि ये इमारत ढह रही है।
- Sudhir "धीर"