तेरी तसल्लियों से अब दिल भी ऊब चूका हैए सनममुहब्बत होती तो इज़हार-ए-यार भी जरूरी थी ना ||Date:- 8 अगस्त 2017© - सुब्रत आनंद "सिफ़र"
तेरी तसल्लियों से अब दिल भी ऊब चूका हैए सनममुहब्बत होती तो इज़हार-ए-यार भी जरूरी थी ना ||Date:- 8 अगस्त 2017©
- सुब्रत आनंद "सिफ़र"