सुब्रत आनंद   (सुब्रत आनंद "सिफ़र")
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Joined 14 July 2017


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Joined 14 July 2017

तुम देख सकते हो,
हमारे अंदर की तन्हाई
जो बसी हुई है
जन्म- जन्मांतर से
हमारे हृदय की
गहराइयों में,
एक लंबी टीस सी
खा रही हमें
भीतर ही भीतर
उससे जल्द ही
पाना है निज़ात
ताकि बन सको
जिंदगी मेरी
हाँ तुम.....हाँ तुम ।।

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12 MAR 2021 AT 18:46

हार कर भी जीत जाती है सदा ही बेटियाँ
है खुशी पल्लू में लेकिन ग़मज़दा ही बेटियाँ

जग नहीं बदला न बदली जग की ये दुश्वारियाँ
दे रही है चीख कर बस ये सदा ही बेटियाँ

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ये जीवन एक जलजला है और क्या?
जिसने जब चाहा छला है और क्या ?
है ख़ुदा किसका यहाँ पर एक अब ?
स्वार्थ ही सबमें मिला है और क्या ?

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17 FEB 2020 AT 13:53

आपने जब कहा था मुहब्बत मुझे ;
और कुछ की नहीं थी जरूरत मुझे ;
आपको सोचते कट रहा रात- दिन -
अब न भाती सुनो कोई सूरत मुझे..!!

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27 JAN 2020 AT 21:21

ख़्वाब आँखों में बसाना अच्छा था
वक़्त- बेवक्त याद आना अच्छा था
एक पल में मुझे बेगाना बना दिया -
तेरा मुझको यूँ सताना अच्छा था...!!

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24 JAN 2020 AT 11:46

बीते दिन के लम्हों की कसक रहने दे
कुछ प्यार भरी बातों की खनक रहने दे
न हम बेवफ़ा थे और न तुम बेवफ़ा थे -
जो मिला था मुहब्बत में वो सिसक रहने दे।

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बाद मुद्दत सफ़र याद आता रहा
जख़्म दिल के सदा वो दिखाता रहा
एक अरसा हुआ वो नज़र भी न आया -
बेबसी को वो हरदम छुपाता रहा...!!

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21 SEP 2019 AT 18:30

तुम क्या जानो, दिल ने कितने
बस तेरे ख़्वाब बसाये हैं
इक तेरा ही आस मुझे अब
यह सोच महावर लाये हैं
जब अश्कों की धार बनी थी
हाँ ढाल तेरी जुदाई का-
तब से जाना नित फूलों से
हम तेरी राह सजाये हैं...!!

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20 SEP 2019 AT 16:00

अपने दिल से पूछो तुम,
दिल के अपने हाल सनम
कटते मेरे दिन ऐसे,
इक पल जैसे साल सनम
बीत रही जो मुझपर क्या,
बीत रही है तुझपर भी ?
बिन तेरे जीवन मेरा,
लगता बस जंजाल सनम...!!

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18 SEP 2019 AT 13:50

सपने होते सच वही, दिखें जो खुली आँख
पंछी उड़ते तब तलक, जब तक रहते पाँख...!!

बचपन के वो दिन कहाँ, बस उसकी है याद
वो गाँव की मस्तियाँ, मिली न उसके बाद...!!

नहीं शहर भाता मुझे, भूला सका न गाँव
वो अल्हड़ अठखेलियाँ, वो बरगद का छाँव...!!

फ़ीकी है मुस्कान अब, फ़ीकी जग की रीत
ले चलो कहीं दूर अब, मुझको मेरे मीत..!!

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