Subhojit Sanpui   (Qaasid)
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Joined 21 October 2017


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Joined 21 October 2017
10 JUN 2020 AT 21:49

मन के ये परिंदे, खो गए है कहीं ।
खोए से, आसमान में, उड़ रहे हैं कहीं ।

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30 MAY 2020 AT 11:02

रात गई, अंधेरा मिटा,
देखो सूरज फिर से उग रहा है,

उठो कि आज एक नया सवेरा
तुम्हारा इंतजार कर रहा है।

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29 MAY 2020 AT 17:56

In the midst
of child and adulthood.

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25 MAY 2020 AT 19:22

दोस्त, मैं तुम्हारे लिए
एक खत लिख रहा हूं।

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24 MAY 2020 AT 15:40

चार दीवारें, दो खिड़कियां, और कुछ लोग
शायद इन्ही चीजो से
एक घर की बुनियाद होती है, नहीं?

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8 MAR 2020 AT 12:33


To all the women out there,
(Read the Caption)

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25 JAN 2020 AT 21:49

वक़्त छूटा जा रहा ।।

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21 JAN 2020 AT 9:55

अपनी जिम्मेदारियाँ खुद संभालने लगा हूँ
खुद को एक बेहतर इन्सान बनाने लगा हूँ।

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14 JAN 2020 AT 22:52

बचपन में थामी उँगलियों को छोड़ने
से वो आज भी कतराती हैं।
माँ की नजरों में प्रौढ़ता भी बालक बन जाती है।

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5 JAN 2020 AT 21:10

बस लिख सकू एक किताब
तेरी याद में किसी दिन,

इश्क ने मुझे बस इतना
ही आबाद किया है|

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