जैसे तैसे गिरते पड़ते संभाला था खुदको फिसलने से ढलवानों पर,
बातें फिर से छेड़ी है उसने कल शाम वाली रुमानों पर।
एक तो वो दूर मुझसे दूसरा उसका दुपट्टा भारी,
उफ़ मैं सोचूं भी तो चूम नहीं सकता उसके शानों पर।
अल्हड़ मेरी सीख रही है अभी अदाएं इश्क़ में रूठ जाने की
वो सुनती है बात मेरी रख कर हाथ अपने कानों पर।
चाहत जो होती है कभी चूमने की उसके कानों को,
मैं ले जाता हूं अक्सर उसे झुमके वाली दुकानों पर।
बस उसके नाम से महकता रहता है कमरा मेरा,
मैंने नाम लिख रखा है उसका खाली गुल दानों पर।
आंखें बातें अदाएं खूब अता है उसको कत्ल के लिए,
उसे क्या जरूरत वो क्यों रखे तीर कमानों पर।
ज़ख्म मिले है कईं कल शब वस्ल में,
वो ख़ार छुपा कर रखती है जुबानों पर।
तील तील कर मारेगी तिल उसके कमर की,
मगर बचना तुम जहरीली है तिल दोनों उसके शानाें पर।
मैं चाहता तो रोक लेता खुद को खुद की तबाही से,
मगर फिसल गया मैं उसके बदन पर गढ़ी ढलानों पर।
खुमार आंखों की उसकी अब मेरी आंखों में दिखती है,
मैं चूम आता हूं आंखें उसकी कोई ना कोई बहानों पर।
जुल्फें छुपा देती है जब कभी झुमके उसके,
मैं उंगलियों से अपनी करता हूं पीछे बाल उसके कानों पर।
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