अब उस जज़्बात को क्या नाम दूँ
जिसका वजूद मुझमें ज़िन्दा तो है
मगर उससे जुड़ा कोई नाम नहीं रहा
इश्क़ को जानती हूँ पहचानती हूँ
मगर अब किसी से इश्क़ न रहा
एक दफे किया था किसी से इश्क़ मगर
उससे दूर जाने को जाने क्या क्या सहा
ग़ज़लें लिखती थी उसकी नादानी पर
इश्क़ का एक नाम था, अब नहीं रहा
- क़तरा