26 JUN 2017 AT 0:55

यूँ तो मेरे ख़्वाबों की कश्ती,
लावे की जू-ए-बार में तैरती है।
एक तू ही तो है जान-ए-जिगर,
जो हर रोज़ मुझमे नफ़स्परस्ती फ़ेरती है।

यादों भरे उक़्बे में मेरी नफ़्स जलती है,
जब इबादत की तरह तेरा नाम लेता हूँ।
हर दुआ में तू जिस तरह बसे,
उसे रिवायत की तरह सलाम कहता हूँ।

तेरे क़दमों में कायनात लाकर,
रख दिया करता हूँ हर रोज़ की तरह।
जैसे अमृता की प्रीत में,
अज़ल तक डूबे हुए इमरोज़ की तरह।

ग़ुलाब सी महक लिए,
गुलज़ार की तरह नज़र आती हो।
सहर की पहली किरन की अर्क में घुल कर,
अफ़कार की तरह नज़र आती हो।

मेरा दिल दरिया, प्यार समंदर,
और इक तू ही तो हमसफ़र मेरा है।
काँटों भरी सह्न में मेरी,
इक तू ही तो रहगुज़र मेरा है।

- सौरभ