12 NOV 2017 AT 20:23

सुबह, शाम, और वीराना;
पल दो पल का फ़लसफ़ा।
दिल कहे तू पास आना;
जाना कहाँ है तू ये बता।

चीखती-चिल्लाती हो तुम;
बिलखती ही रह जाती हो।
चाँद को मनाती हो तुम;
क्यों पास अब न आती हो।

चेहरा मेरा अब दिख रहा;
जो ढँक लूँ मैं बर्बाद हूँ।
मैं बाज़ार में हूँ बिक रहा;
ज़हन में ही मैं आबाद हूँ।

- सौरभ