भरोसा नहीं, कब, कहाँ, किसका,कौन हो जाऊँ;अल्फ़ाज़ की गिनती मेंमैं मौन हो जाऊँ।एक मौका मिले,'मुहब्बत' के रंग में घुलने का;मैं बेख़याली सा उस रोज़,जौन हो जाऊँ। - सौरभ
भरोसा नहीं, कब, कहाँ, किसका,कौन हो जाऊँ;अल्फ़ाज़ की गिनती मेंमैं मौन हो जाऊँ।एक मौका मिले,'मुहब्बत' के रंग में घुलने का;मैं बेख़याली सा उस रोज़,जौन हो जाऊँ।
- सौरभ