21 JUL 2017 AT 2:53

भरोसा नहीं,
कब, कहाँ, किसका,
कौन हो जाऊँ;
अल्फ़ाज़ की गिनती में
मैं मौन हो जाऊँ।

एक मौका मिले,
'मुहब्बत' के रंग में घुलने का;
मैं बेख़याली सा उस रोज़,
जौन हो जाऊँ।

- सौरभ