सात समंदर, सात अजूबे,
सप्तर्षि और सात फेरे ,
गोलगट्टम लकड़ पट्टम दे दनादन प्रतियोगिता मे
नंबर सात हुआ सेवानिवृत्त प्यारे।
आज भी सामना देखते समय सोचते है
क्या दिखेंगे विरोधी संघ को दिन मे तारे,
क्या होगी फिरसे उदग्रविमान की बरसातें
क्या कभी फिर खेलेंगे धोनी भैय्या हमारे।-
भाईचारा
जब राम के घर दीपावली भोज था,
तब पहली हाजरी रहीम ने लगाई थी।
रंगोली से लेकर पटाखों तक
हर चीज की जिम्मेदारी उसने ही तो ली थी।।
जब शाहिद ने ईद की दावत रखी,
तब श्याम ने बहुत खीर खाई थी।
मेहमानों की छोटी सी छोटी ख्वाहिश से लेकर
जश्न की हर तैयारी उसी ने तो की थी।।
सीता और सबीना एक ही स्कूल के
एक ही बैंच पर तो बैठते है।
रोज अपने डब्बे की रोटी,
एक दूसरे से बांटते है।।
घर पे शादी हो या निकाह,
दोनों मे भी उतना ही चहकते है।
चाहे मन्दिर हो या मस्जिद,
माथा दोनो जगह टेकते है।।
क्या गीता, क्या कुरान यारों?
सीख भाईचारे की ही तो देते है।
चाहे अल्लाह हो या भगवान
दिल जिसका नेक हो, उसमे ही तो बसते है।।-
इक उम्र गुज़र गयी तुम्हारे इन्तेज़ार में...
इक उम्र कट रहीं हैं तुम्हारे इन्तेज़ार में...
लगता हैं... हम भी गुजर जायेंगे
तुम्हारे इन्तेज़ार में।-
हमने कहा...
एक नज़र देख तो लीजिए।
इतनी भी क्या नाराजगी...
जरासा मुस्करा तो दीजिये।-
अब के आग लगी है चिलमन मे
तो धुआ तो उठेगा।
अगर जल रही है शमा
तो परवाना भी जलेगा।-
जब गुत्थियां.. सुलझे हुए धागों से अच्छी लगने लगे...
जब बेचैनियां.. भी सुकून सी मालुम होने लगे...
जब रेत के घर.. पुरानी इमारतों से पक्के लगने लगे...
और उसके तसव्वुर मे.. दिन और रात के बीच का फरक समझ ना आने लगे...
समझ लेना... अब खुद को खुद ही संभालना होगा...
समझ लेना... अब आँसू पीकर भी मुस्कुराना होगा...
समझ लेना... इश्क़ हुआ!
अब आगे सफर मुश्किल होगा।-
नाम भलेही लता था उसका
हस्ती विशाल वृक्ष सी थी..
आज भगवान के दर पर भी
एक महफ़िल सज ही गई होगी।— % &-
आलीशान मकानों मे सुकून नहीं मिलता
सुकून तो सिर्फ़ घर मे मिलता है!
और घर वही होता है
जहां माँ होती है!-
हसीनाओं से भरी महफिल मे भी...
जिसकी नज़रे सिर्फ़ मुझे ढूँढे।
दिलबर ऐसा हो..
जो रूह से रूह की डोर को बाँधे |-
अक्सर देखती हूँ ख्वाबों मे तुम्हे...
सोचती हूँ ...
हकीकत क्यूँ नहीं बन जाते तुम!-