sneha burnwal   (Sneha burnwal(अनकही ))
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Joined 20 April 2018


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15 DEC 2021 AT 11:19

शब्दों को समझना उसने छोड़ दिया |

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15 DEC 2021 AT 11:13

मैं हर बार टूटता हूँ, हर बार जुड़ता हूँ,
बिखर जाता हूँ पल में, मै फिर समेटता हूँ,
हर दांव देखता हूँ, हर घाव झेलता हूँ,
इतिहास की किताब में फिर पन्ना जोड़ता हूँ,
मै आईने में खुद को कशी देखता हूँ |

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5 AUG 2021 AT 18:39

मन खराब है जो तन खराब रहते है,
वरना इश्क के मर्ज पर खुदा भी मरते है |

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20 JUN 2021 AT 23:41

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13 JAN 2021 AT 21:15

कभी कभी मन के भावों को व्यक्त करना कितना मुश्किल होता.... कहना बहुत कुछ चाहते है पर शब्द नहीं मिलते है.... ऐसा लगता है मानो लफ्ज कहीं सीने में दबे हुए है.... और दोनों बाहें खोलकर फड़फड़ा रहे हो बाहर आने को.... पर... फिर रोक लेती है खुदको सबके सामने आ जाने के डर से |

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13 JAN 2021 AT 20:58

जब शोर मन के भीतर हो
तो बाहरी शोर शून्य हो जाते है |

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16 DEC 2020 AT 10:46

थोड़ी प्रेम भरी धूप जरुरी है,
जमे न जाये होंठ मेरे,
तेरे सांसों की गर्मी जरुरी है |
रिश्तों पर न बर्फ़ जमें,
थोड़ी प्रेम भरी धूप जरुरी है |
पथराई आँखें है बुझी हुई,
तेरे नैनों के दीप जरुरी है,
रिश्तों पर न बर्फ़ जमें,
थोड़ी प्रेम भरी धूप जरुरी है |

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3 NOV 2020 AT 15:19

जिन्हे पीछे छोड़ आगे
बढ़े थे.. हम कभी !

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16 SEP 2020 AT 10:15

हम कुछ प्लान करते है और जिंदगी कुछ और.... जब ये दोनों मिलते है तो इंसान सिकंदर बनता है... और जब ये दोनों विपरीत हो तो बस खोटा सिक्का बन कर रह जाता है जिसके चलने की कोई उम्मीद नहीं होती... बस कभी-कभार तुक्का लग जाता है |

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31 MAY 2020 AT 21:21

वक्त की धूल बन...
उड़ना नहीं चाहता |

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