21 JUN 2018 AT 21:03

गोलू

खुली किताब के अनलिखे अल्फ़ाज हूँ,
खुद में खोया सा बन्दा; पागल बेहिसाब हूँ,
कभी औरों से तो कभी खुद से नाराज़ हूँ,
कभी गंभीर तो कभी खुशमिजाज हूँ,
जिंदगी की महफ़िल में अक्सर शायराना अंदाज हूँ,
जो हो कोई गम तो हर दफा बाँटने मैं तैयार हूँ,
औरों की नज़र में अजीबोगरीब इंसान हूँ,
और अगर हो क़रीब तो अपनेपन का अहसास हूँ,
भागती सी जिंदगी; मैं जरा धीमी रफ्तार हूँ,
जो अगर हो हिम्मत तो मैं हास्य का भंडार हूँ,
सवाल हूँ जवाब हूँ सहनसीलता का इम्तेहान हूँ,
उम्मीद हो खत्म तो मैं हौसले का आगाज़ हूँ|

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