धरम या भरम ??????🤷🏼♂️
जाती छोटी बोलके यहां,
हार मूर्तियों पे चढ़ाए...
स्वार्थ नफरत पाले है,
जिंदा लोग ये जलाए..
जात पात पाले बैठे है,
बेरहमी बसी तन-मन में..
भाईचारे की पुकार नही,
नाही विश्वास जन-गण में..
भारत माता कहकर भी,
भारतीय निचले लगते है..
सबको अपना कहने में,
इनके पैर डगमगते है..
ना खुद की पहचान इन्हे,
नाही खुद का धरम..
जी रहे है सभी ऐसे,
जैसे मन में पाले भरम..🤷🏼♂️
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स्वार्थी दृष्टी हेतूच्या वाईट नजरा..
किती काळ टिकेल हा,
अशोभनीय बेगंध धर्माचा गजरा..
निरस्त करा त्या बेधुंद कार्यास..
ज्याने सद्भावना दूर होईल,
होऊ नये वायफळ हा विपर्यास..
गुलामी ची मंदबुद्धी सहज त्याग..
तो तुझ्यातील सच्चा मावळा,
पेटविल सत्या प्रती बलिदानाची आग..
एकतेची पताका फडकव आज..
या मातीची जान बाळग,
वंदूनी 'छत्रपती शिवाजी महाराज'..-
।।ख्वाब।।
कल्पना से परे है,
कभी ढूंढने से ना मिले जिसका जवाब।
जिंदगीसे से जुड़े है,
मुस्कुराता रुलाता हर किसीका ख्वाब।।
यह ऊर्जा से भरा है,
मोहब्बत नफरत करना सिखाता है।
खामोशी से थका हारा है,
यह अंधेरे में रास्ता भी दिखाता है।।
संघर्ष का साथी है,
नियम कायदे नहीं वैसे मानता।
उत्कर्ष के भाती है,
रास्ते नए यह जबकुछ जैसे जानता।।-
'शोधू कुठं रं..'
तो भारत माझा, सर्व जगास ज्याची ओढ..
ते दूरचे नाते, ज्यास विचारांची जोड..
ती हिरवळ जंगले, मानव पशू व प्राणी..
ते मनमोहक वारे, निर्मळ नदीचे स्वच्छ पाणी..
तो प्रियदर्शी राजा, अशोकाची दृष्टी असणारा..
ती शोर्याची विद्वत्ता, छत्रपतींचा मावळा भासणारा..
तो सत्य सिद्धांत मांडनारा, बुध्द सुखकर्ता..
ते न्याय समाज घडविणारा, भीम दुःखहर्ता..
ते आयुष्य घडविणारे, पुस्तकातील पाठ रं..
ही जीवन धम्म शिकविणारे, महामानव शोधू कुठं रं..
शोधू कुठं रं...-
'जुनून'
क्यू उस right या wrong के चक्कर मे....
पडता है..
बिना सोचे समजे यू ही क्यू...
अकडता है..
ले सन्यास इन बेहकी-बेहकी ..
बातोसे..
आखिर कूछ तो हो अंजाम....
बडा...
तेरे इन छोटे हातोसे..
फरक नही मुझे तू है किस..
खुन से..
सब है धरती के आया नही कोई..
मून से ..
रुकना मना है.. यहा...
थकना... मना है..
बडते ही चल बेटा...
अपने ही जुनून से...-
'धर्म का सत्य पाठ'
धर्म के आहोश मे आदमी,
मधुर वाणी मे खोता है...
सत्य की परिक्षा नही होती,
उसका तो विरोध होता है...
जितेजी आस्था का रुप,
समशान होता है..
जो सत्य के मार्ग पे चले,
वही परेशान होता है..
इमाने इतबार है आज,
जो जितेजी जिंदा है..
दया-कृपा का पुजापाठ
वह तो सिर्फ धंदा है..
निष्ठावंत वहा मानव प्रेमी,
नास्तिक कहलाता है..
लुटेरा जहा दयालू बनकर
आस्तिक कहलाता है..-
' खूळ्यांची सर्दी '
आनखी किती मानसिक बिमार करनार,
आनखी किती जीव घेणार,
मूर्ख पणा सोडून हा,
आज तरी बुद्धाला वाच....
काळा बाजार असा हाच तो
आज तक राशीफळ सांगणारा
माथ्यावरी भिडला अंधश्रद्धेचा नाच...
दाखवितात आजही तितकीच
ही बुवा-भोंदू साधूमहाराजांची गर्दी..
भर तापत्या उन्हात वाढणारी
ही येळ्या-खुळ्यांची सर्दी...-
'समता और सत्ता'
नियम सबके लिये बराबर होने चाहिये, किसी विशीष्ट परिस्थिती मे न्याय हेतू किसी व्यक्ती या वर्ग को विशेष संधी देना गलत नही है। सरकार द्वारा समाज मे सामजिक समता का प्रचार करना बेहद जरूरी है, अगर व्यवस्था खुद समता का पालन नही करती और किसी ताकतवर को फायदा पहुचाने हेतू भेदभाव का साथ देती है, तो पीडित लोग जानभुजकर गलतिया करने हेतू तयार हो जाते है।
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An Indian who believes on
equality of opportunities..
To do work for our Nation's
Bright future and
No one die from hunger or
Never Injustice anymore with anyone..
Be the Indian firstly and lastly..
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I starts beginning of dreams
Be giver for my nation
People to love me with
Unforgettable moments
Which to each other connect.-