सुंदर सपने को साकार करने के लिए
संर्घष करना होता है ,
संर्घष को साधने के लिए
संयमित जीवन जीना पड़ता है
तब जाकर हमें अपना लक्ष्य प्राप्त होता है-
दुनिया सिर्फ आलोचना करना जानती है
अच्छा करो -बुरा करो हर तरफ मिलते हैं !
आलोचक...........!
इस लिए सोच मत बस करो जो करना है-
ना उदास होना है ,ना रूकना है
बस अपनी अपनी मंजिल तक चलना है
जब तक ना मिले मंजिल तब तक चलना है
मंजिल कि राह में मिल रहे हैं कांटे
कोई बात नहीं कांटों से गुजरना है
मंजिल तलक पहुंचना है
चल रहा सब कुछ वैसा -जैसा हमने सोचा है
ओ मंजिल तू थोड़ा खफा खफा हैं
ऐ मंजिल तुझको हम ने कब छोड़ा है
जब तक है हिम्मत बाकी बस तेरी हसरत है
पा कर रहेंगे तुझे ऐसी मेरी जिद है
श्वेता सिंह "मोना रंजन"-
ऐ दोस्त तुझे क्यो था जाना जरूरी
तुने अपनी जिद करली पूरी
अब है सारी उम्र की दूरी
पर अब तेरे बिना जीना है मेरी मजबूरी
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शानदार सफलता के लिए बहुत बधाई
सफलता सदा क़दम आपके चूमे
बस मंजिल पर अपने है पांव अब जमाना
शिखर पर जरा अब प्रचंड दृष्टि है लगाना
क्यूंकि अभी और आगे है तुम्हें जाना
नई मंजिलें और नई राह होगी
कभी -कभी नई मुसीबतें भी होगी
उन्हें देखकर तुम घबरा न जाना
मुश्किलों में तुम धैर्य को अपनाना
सरलता सहजता से मार्ग बनाना
सुर्य सी चमक आप में देखेंगा जमाना
मेरी शुभकामनाएं प्रिय साथ लेते जाना
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दुनिया में जब था तो कोई मिलने न आय
कर ली खुदकुशी तो शहर में शोर मच गया
रंगमंच पर जीना सीखा आया
मेरे मन को कभी चैन न आया
क्या करे पल पल मिटने वाला
एक पल में मौत को गले लगाया-
मेरा साथ छोड़ कर अपने से नाता तोड़ कर
यू सब को बिलखता छोड़ कर
असमय तू अलविदा कह गई
कहां तू चली , गई
मेरी सहेली
मेरी सहेली
जान मुझे कहती थी
मेरी जान भी तू संग ले गई
अब नहीं हो मित्रता का सबेरा-
मेरा साथ छोड़ कर अपने से नाता तोड़ कर
यू सब को बिलखता छोड़ कर
असमय तू अलविदा कह गई
कहां तू चली , गई
मेरी सहेली
मेरी सहेली
जान मुझे कहती थी
मेरी जान भी तू संग ले गई
अब नहीं हो मित्रता का सबेरा
अपनी मर्जी तू चला थी
मुझे कितना समक्षाती थी
अब कौन मुझे समझयेगा
कौन मोटी बुलायेंगे
अब तू नहीं आयगी
बस तेरी याद मुझे सतायेगी
अब ना होगा कभी मिलन
तेरी याद में तरसेगा जीवन
अश्रुपूर्ण रहेंगे नयन
तुझ बिन शूल बना जीवन
त-
मेरा साथ छोड़ कर अपने से नाता तोड़ कर
यू सब को बिलखता छोड़ कर
असमय तू अलविदा कह गई
कहां तू चली , गई
मेरी सहेली
मेरी सहेली
जान मुझे कहती थी
मेरी जान भी तू संग ले गई
अब नहीं हो मित्रता का सबेरा
अपनी मर्जी तू चला थी
मुझे कितना समक्षाती थी
अब कौन मुझे समझयेगा
कौन मोटी बुलायेंगे
अब तू नहीं आयगी
बस तेरी याद मुझे सतायेगी
अब ना होगा कभी मिलन
तेरी याद में तरसेगा जीवन
अश्रुपूर्ण रहेंगे नयन
तुझ बिन शूल बना जीवन
तुझ बिन महफ़िल भी रंगहीन
करनी थी तेरी विदाई
तूने दे दी पूर्ण जुदाई
नहीं करनी थी ऐसी विदाई
एक बार फिर से न मिलने न जुदाई
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