दफ़्न होने दे मेरे रूह को सन्नाटे की कब्र में,की मेरा जिस्म मेरे शोर को बाहर निकलने नही देता,कैद होने दे अब मेरी ताकत को खुदा के दरबार में,की अब मेरा मन और लड़ने की गवाही नही देता! - शुभी खरे "मनोराज"
दफ़्न होने दे मेरे रूह को सन्नाटे की कब्र में,की मेरा जिस्म मेरे शोर को बाहर निकलने नही देता,कैद होने दे अब मेरी ताकत को खुदा के दरबार में,की अब मेरा मन और लड़ने की गवाही नही देता!
- शुभी खरे "मनोराज"