हैं आप नटखट या ये आंखें नटखटी हैं गर कहना सच है तो हां, तेरे लब शरबती हैं इन इशारों को समझ अब तक कहां पाया मैं इक हां को तकते ना जाने कितनी रातें कटी हैं
आग कहीं, धुआं कहीं उठ रहा है आज सभी लैला मजनू हैं, प्यार किश्तों में बट रहा है उतरे केवल हम नहीं, तुम नहीं, सभी इस दरिया में हैं हवा कम पर गई शायद इसीलिए दम घूंट रहा है।
इश्क़ है तो कहदो वरना शाम गुजर जाएगी आज के बाद क्या पता ये बहार कब आएगी मैं तो भूखा हूं मोहब्बत का मुझे इलज़ाम न देना वफा से जो मुकर गए हम, तुम्हारी सहेली भाग जाएगी।