थी ज़िंदगी की कश्ती,
और दर्द-ए-समंदर...
करना पार था दरिया,
पर था डूबने का डर...
थी मुश्किलों की लहरें,
और बंदिशो के कई भँवर...
थामें हौसलें की पतवार,
थें मंज़िल से बेख़बर...
अँधेरे की चादर ओढ़े आसमान,
से रूठा था सहर...
तूफ़ान भी इंतज़ार में,
कि कब टूटें इसका सबर...
पर इश्क़ का यें फितूर,
सर पें चढ़ा था इस कदर...
थामें उम्मीद का दामन,
मैं लड़ रहा था बेफ़िकर...
है सूरज की रोशनी,
छिपी बादलों में इधर-किधर...
हूँ साया तलाशता,
शायद तनहा ना रहे सफर...
अभी जंग जारी है मेरी,
पर लिखूँगा खुदका मुक्कद्दर...
आएगी बाज़ी भी मेरी,
ए-वक़्त, तू थोड़ा सा ठहर...
है महताब सा नूर,
उसके चेहरे पर...
मिटें आँखों की तिश्नगी,
चाहे मुलाक़ात हों मुख़्तसर...
इस मुसलसल ज़ुस्तज़ू में,
ना जाने गुज़रे कितने पहर...
ख़त्म होगी घड़ी इंतज़ार की,
बस साहिल पे थी नज़र...
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