Shubham Chauhan  
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Joined 4 January 2018


Joined 4 January 2018
18 AUG 2018 AT 21:26

थी ज़िंदगी की कश्ती,
और दर्द-ए-समंदर...
करना पार था दरिया,
पर था डूबने का डर...
थी मुश्किलों की लहरें,
और बंदिशो के कई भँवर...
थामें हौसलें की पतवार,
थें मंज़िल से बेख़बर...

अँधेरे की चादर ओढ़े आसमान,
से रूठा था सहर...
तूफ़ान भी इंतज़ार में,
कि कब टूटें इसका सबर...
पर इश्क़ का यें फितूर,
सर पें चढ़ा था इस कदर...
थामें उम्मीद का दामन,
मैं लड़ रहा था बेफ़िकर...

है सूरज की रोशनी,
छिपी बादलों में इधर-किधर...
हूँ साया तलाशता,
शायद तनहा ना रहे सफर...
अभी जंग जारी है मेरी,
पर लिखूँगा खुदका मुक्कद्दर...
आएगी बाज़ी भी मेरी,
ए-वक़्त, तू थोड़ा सा ठहर...

है महताब सा नूर,
उसके चेहरे पर...
मिटें आँखों की तिश्नगी,
चाहे मुलाक़ात हों मुख़्तसर...
इस मुसलसल ज़ुस्तज़ू में,
ना जाने गुज़रे कितने पहर...
ख़त्म होगी घड़ी इंतज़ार की,
बस साहिल पे थी नज़र...

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27 JUN 2018 AT 20:37

वो स्कूल की घंटी,
वो कांधो पे बस्ते...
वो नाचना वो मस्ती,
जब भी बादल बरसते...
वो सकरी सी गालियाँ,
वो अंजाने रस्ते...
जिनमें निकल जाते थे,
दोस्तों के संग हँसते-हँसते...

वो शाम-ए-सवेरा,
वो उल्फत ज़ुबानी...
वो बचकानी मस्ती,
वो दिलकश रवानी...
वो पतझड़ वो सावन,
वो बसंत-ए-बहारा...
वो इश्क़ की नदियों,
में बहती जवानी...

वो मुस्कुराता चेहरा ज़िंदगी के,
बदलते मौसमों से अंजान हैं...
वो खिलखिलाता बचपन,
अब कही गुमनाम है...
ना तब चिंता थी दुनिया की,
ना अपनी फ़िकर थी...
लेकिन अब देखके जीवन की उलझने,
ये बावरा मन कितना परेशान है...

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7 FEB 2018 AT 10:01

कभी गर्मी की कड़कती धुप में,
तू एक पेड़ की शीतल छाया हैं...
कभी ठंड की कोहरी रात में,
तू मेरा साथ देती हुई साया हैं...

इस जीवन की मझदार में,
तुझे पतवार बनाना चाहता हूँ...
मैं कल तक तो निर्मोही था,
अब तेरा जोगी बनना चाहता हूँ...

सीधा हूँ मैं सुलझा भी हूँ,
पर टेढ़ो के लिए एक पहेली हूँ...
तेरे प्यार की चाशनी में,
डूबी हुई एक जलेबी हूँ...

तेरी हर एक मुस्कान पे,
मैं अब रोज़ फिसलना चाहता हूँ...
तेरे साथ की धीमी आँच में,
थोड़ा और पिघलना चाहता हूँ...

इन आँखों के पैमाने से मन,
अब हर पल तेरी मदीरा पीता हैं...
तू पास में हो तो ये मन का पंछी,
तेरी झलक का दाना चुगता हैं...

तेरे कोमल से सुर्ख होठों को,
इन होठों से सीना चाहता हूँ...
तेरे योवन की मधुशाला का,
प्याला बनना चाहता हूँ...

छु कर निकले जो तेरी ज़ुल्फो को,
मैं वो ठंडी हवा का झोंका हूँ...
चाहूँ तो तुझे घायल करदूँ,
मैं तरकश का तीर अनोखा हूँ...

उस गगन में उड़ती पतंग सा हूँ,
तुझे डोर बनाना चाहता हूँ...
यूँ तो होती हैं बेग़म चार,
अक्सर ताश सी ज़िन्दगी में...
पर मैं अपनी ज़िन्दगी की शतरंज में,
तुम्हें वज़ीर बनाना चाहता हूँ...

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13 JAN 2018 AT 17:18

यूँ तो प्यार है मुद्दा आम बड़ा,
दिल की गलियों और कचहरी में...
लड़ते है मुकदमा ना जाने कितने,
तुझे रखके दिल की तिज़ोरी में...
कुछ ऐसे भी फरियादी है,
जो जाते है मंदिर और मज़ारों में..
मुश्किल तो बहुत होता होगा,
जब चुनना हो कोई एक हज़ारों में...

कोशिश तो हम भी बहुत करते है,
तुमको तुमसे चुराने की...
बस... उस इलज़ाम की कमी है...
प्यार की क्लासरूम में,
इम्तेहान की कमी है...

मैंने आशिक़ बहुत से देखे है,
महफ़िल में मैख़ाने में...
पीते है अब गम की मदिरा वो,
अक्सर इश्क़ के पैमाने में...
देख कर ये मंज़र,
तुझे इज़हार करने से डरता हूँ...
लाख समझाया खुदको फिर भी,
तेरा जाम इन नज़रों से पिया करता हूँ...

अब इस गर्मी की कड़कती धुप में,
बस... बरसात की कमी है...
अब प्यार की क्लासरूम में,
बस... इम्तेहान की कमी है...

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13 JAN 2018 AT 17:15

प्यार की क्लासरूम में,
इम्तेहान की कमी है...
इन हाथो में जब होगा हाथ किसी का,
बस... उस शाम की कमी है...
यु तो हर रोज़ दिल लगाते है हम,
न जाने किस किस अजनबी से...
पर किसी रोज़ कोई हमसे भी दिल लगाये,
बस... उस इंसान की कमी है...

जो मेरे... हर गहरे राज़ की,
हमराज़ बन सके...
जो मेरे... हर अनकहे जज़्बात की,
आवाज़ बन सके...
जिसके ज़िस्म पे फिसलने से पहले,
मेरी उँगलियाँ उसकी ज़ुल्फो में उलझ जाए...
जब उसकी नज़रें मुझपे टिके,
तो धड़कने तो रफ़्तार पकडे...
मगर... साँसे थम सी जाए...

अब लबों पे उस एहसास के,
नाम की कमी है...
प्यार की क्लासरूम में,
इम्तेहान की कमी है...

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5 JAN 2018 AT 1:33

Yaad aati h mujhe vo hostel ki pehli raat, jab mila tha mujhe naye dosto ka saath...
Main tha ek ladka jo kabhi na rha tha ghar se dooor,
mila par aise doston ka saath mujhe jisse ghar ko na yaad krne par
hua main majboor...

Chahe vo late night hostel me deewar kood kar aana,
ya fir Maggie baba ka glass tutne par haalat kharaab ho jaana...
Rishikesh me jaake rafting karna,
ya fir bhand hoke pahad chadna...

Exam se pehli raat ko bhi humne masti kari,
Dekh suraj ko karvat kholi, par aankhon me thi neend bhari...

Doston ne kaha, zindagi kashmakash me nahi
ek ek kash me jeeni chahiye...
Doston ne kaha, zindagi kashmakash me nahi
ek ek kash me jeeni chahiye...
Chal aage mat kariyo, par kabhi to zindagi me ek baar doston ke saath peeni chahiye...

Yaad aaengi hostel ki vo anginaat raatein, bematlab ki masti aur dher saari baatein...
Anjaani h raahe, ab h ek naya Safar...
Sab mehfilo me tumahri yaad aayegi...
Ab naa jaane ye zindagi , kis mod par milvayegi...

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4 JAN 2018 AT 22:54

यु तो होती है बेगम चार,
अक्सर ताश सी ज़िन्दगी में...
पर मैं अपनी ज़िन्दगी की शतरंज में,
तुम्हें वज़ीर बनाना चाहता हूँ...

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