जब उस शक़्स के लिए लिखना शुरू करता था,
तो क़लम रुकने का नाम नहीं लेती थी ।
तसव्वुरीयत की कोई सरहद नहीं होती थी,
वो तख़लीकें पढ़ कर सांसें आवाम नहीं लेती थी ।।
मेरी कोई खासियत न थी इसमे, न मेरा कोई हाथ था,
सब उसकी शख्सियत का कमाल था बस ।
उसकी अदाएं, उसकी रूहानियत, उसकी बातें,
सुध में रह कर भी, हाल मेरा बेहाल था बस ।।
शामिल हुई थी वो ज़िन्दगी में कुछ इस क़दर,
मैंने किसी को भी देखना, सोचना, चाहना, छोड़ सा दिया ।
किसी और की फिर कभी हसरत ही नहीं हुई,
जिंदगी मुक़म्मल सोच कर खुद को उससे जोड़ सा दिया ।।
उसकी ख्वाइशें मेरी पहली अहमियत बन गईं,
उसकी हर बात मानना जैसे मेरा ईमान हो गया ।
वो पहले इश्क़, फिर आदत, फिर ज़रूरत बन गयी,
और मुझे उसका सिर्फ मेरी होने का घुमान हो गया ।।
बेहद हसीन थी मेरी दुनिया उसके साथ,
बिल्कुल वैसी, जैसी एक तितली की होती है फूलों के बीच ।
उसकी मोहब्बत ने कुछ यूं बनाई थी जगह दिल की गलियों में,
जैसे राधा-कृष्ण विचरते हों सावन के झूलों के बीच ।।
To be continued...
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