एक कवि की कलम के भाँति
बसंत में खिलती हुई कली
या रेगिस्तान में मिली छाँव
कहना तुम्हें, ठीक नहीं होगा
क्योंकि कविता और ग़ज़ल तो
कल्पनाओं का डेरा है
पर तुम एक हक़ीक़त हो
एक ऐसी हक़ीक़त जो
कई मीठे, कड़वे, तीखे और नमकीन
स्वाद से बनी है
जो वक़्त के साथ
परतों में एक एक कर
ज़बान पर खुलती है
मेरा मन जब भी
तुम्हें नाम देने में ना-क़ाबिल होता है
तब मैं तुम्हें मेरी आख़िरी पढ़ी नोवल में से
एक पसंदीदा किरदार का नाम दे देता हूं
क्योंकि उस को पढ़ते हुए जब
लफ़्ज़ों को किसी छवि का आसरा चाहिए था
तब एक वफ़ादार पढ़ने वाले की तरह
उस किरदार में मैंने
तुम्हारी छवि का तसव्वुर किया था,
बस यूं ही मैं साहित्य और तुम्हें
अक्सर मिला लिया करता हूं
किंतु एक हक़ीक़त मैं भी कहना चाहता हूं
तुम एक किरदार नहीं पूरी किताब हो
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