जानते हो?
तुम्हारे जाने के बाद मैंने
हर वो दिन हर वो तारीख
याद रखी जो हमदोनो के
लिए खास थी...
हर वो समय याद रखा
जब हमदोनो एक साथ थे
हर वो ठिकाना याद रखा
जहाँ तुम बैठकर मुझसे हक
जताया करते थे...
तुम्हारे होने पर ये दिन ये समय ये ठिकाना
ये सारी यादें तुम्हारे साथ एक उत्सव की तरह मनाना चाहती थी
किंतु अब तुम नहीं हो
लेकिन तुम्हारी चाह भी नहीं है
मैं अब भी इन्हें याद करती हूँ
हर तारीख को
हर दिन को
हर उस जगह को
किंतु वो सिर्फ मेरा प्रेम बनकर मेरा भाव जो तुम्हारे लिए था
यही बनकर मुझे याद आता है....
मुझे तुम नहीं याद आते
फराज़ मुझे मेरा प्रेम याद आता है....
मुझे मेरा भाव याद आता है
मुझे मेरा समर्पण याद आता है
मुझे इन चीजों के रहते त्याग कैसे हो गया
ये याद आता है...
सच कह रही मुझे तुम नहीं याद आते हो.....
मुझे अपनी आशिकी का वो जमाना याद आता है....
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