Shruti Choudhary   (श्रुति चौधरी "मीमांसा")
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Joined 17 June 2017


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Joined 17 June 2017
30 APR 2019 AT 16:13

एक दशक से...
घर से बाहर बहुत दूर सूखे दरख़्त पर,
अचानक गुलमोहर का खिलना...
मानो रच रहा था!
मेरे तुम्हारे प्रेम का....
"क्षितिज"।

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26 MAR 2019 AT 9:28

अब तक के जीवनकाल में
मेरे हिस्से हमेशा
दुर्गम राह और जटिल कार्य आये हैं
तभी तो ...
मैंने चुना "प्रेम" को

... आदतन !

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16 OCT 2021 AT 12:37

जहाँ तुम्हें देखने भर से सुकूँ मिल जाता है
वहाँ तेरी नामौजूदगी सीधा क़त्ल करती है।

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8 OCT 2021 AT 15:00

श्रुति चौधरी 'मीमांसा'

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11 SEP 2021 AT 14:58

अरसा हुआ ज़िंदगी को तन्हा छोड़े,
तुमसे नज़र हटे तो ज़रा बात बने।

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24 JUN 2021 AT 11:27

मैं जनककुल राजकुमारी
चली संग साजन ससुरारी
जनक हमारे देख रहे हैं
नयन से आँसू पोछ रहे हैं।
सोच रहे बाबुल की प्यारी
एक पल में हो चली पराई
देकर संस्कारों की दुहाई
माँ पोटली चावल भर लाई
पूछा हमने माँ ये क्या तुम देती
बोली दोनों कुल की लाज है बेटी।

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21 APR 2021 AT 16:22

शेषनाग संग नन्दी थिरकत सुनकर जिनके नाम
भस्म लगाए शिव सुमिरत हैं "राम राम राम राम"

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2 APR 2021 AT 11:01

ज़िंदगी यूँ फ़िज़ूल की अच्छी नहीं लगती,
कुछ तो मक़सद हो तुम्हारे ख़्वाबों के सिवा

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31 OCT 2020 AT 20:08

भूलने लगी हूँ कि इंसान हूँ मैं...
सामान सी हो गई है जबसे जिंदगी मेरी।

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27 OCT 2020 AT 16:55

तुम जश्न मना रहे हो कि, छल कर कर के तुमने हमें तोड़ डाला
हमें हैरत है कि इनसब में तुमने अपनी आत्मा को ही मार डाला।

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