कबूतर   (शोभित मिश्रा)
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Joined 1 October 2017


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22 APR 2023 AT 10:58

जब जमाल उसकी ज़ुल्फ़ों में जा उलझा है
तब ख़्याल उसकी ज़ुल्फ़ों में जा उलझा है

अगरचे आए वो सुखाने तो मांग ही लूँगा
जो ये साल उसकी ज़ुल्फ़ों में जा उलझा है

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20 APR 2023 AT 9:12

तुम जो जाओगे ऐसे उधर रार भर
सूना हो जाएगा मेरा घर रात भर

तेरी यादों को रस्ता बनाये हुए
एक कमरे में चलता सफ़र रात भर

इन निगाहों से ऐसे ना देखा करो
मुझपे रहता है इनका असर रात भर

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20 APR 2023 AT 1:39

लिखने लिखाने की सोहबत में बैठा रहा
कोसों दूर यहाँ मोहब्बत में बैठा रहा
लिखा हुआ उस तक पहुँचा ही नहीं
मेरे ख़त का मज़मून ख़त में बैठा रहा

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20 APR 2023 AT 1:20

शाम को रात करके चली गई है
अजीब हालात करके चली गई है
कल की शाम का इंतज़ार है मुझे
वो अधूरी बात करके चली गई है

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19 APR 2023 AT 12:01

ज़रूरत से यकीनन कम बता रहा था उसे मैं
कल रात को अपने ग़म बता रहा था उसे मैं
ग़ैरमौजूदगी का कोई तक़ाज़ा नहीं किया लेकिन
उसके नहीं होने का आलम बता रहा था उसे मैं

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19 APR 2023 AT 11:02

मोहब्बत की गली का यह भी फ़साना है
उसने झूठ बोला है - मैंने सच माना है

एक वो है जिसे बातों का सलीका ही नहीं
एक मैं हूँ जिसे बहुत कुछ बताना है

मेरी ही बातों पर हँस रही है आज वो
मेरी ही बातों पर उसे रूठ जाना है

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22 MAR 2023 AT 22:58

जागो तो हिसाब का बोझ रहता है
नींद पर ख़्वाब का बोझ रहता है

कोई नेकी यूहीं नहीं की जाती
इरादों पर सबाब का बोझ रहता है

दिमाग़ में सवाल का रहता ही नहीं
ज़बान पर जवाब का बोझ रहता है

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21 MAR 2023 AT 10:56

एक हसीं बहाने से तक़दीर में बैठा हुआ
बिन कागजात दिल की जागीर में बैठा हुआ
प्यारा लगता है और खूब लगता है
एक शख़्स अपनी तस्वीर में बैठा हुआ

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4 MAR 2023 AT 23:51

एक हसीन बहाने से तक़दीर में बैठा हुआ
बिन कागजात दिल की जागीर में बैठा हुआ
प्यारा लगता है और खूब लगता है
एक शख़्स अपनी तस्वीर में बैठा हुआ

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4 MAR 2023 AT 23:37

ज़िंदगी के बुरे दिन संवर जाएँगे
तारे गर्दिश में ही सब निखर जायेंगे
देख ली है जो आँखों ने तस्वीर वो
दर्द दिल के हाँ दिल में ही मर जाएँगे

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