30 MAY 2018 AT 21:21

आज  फिर  पूछा दिल ने
ज़ज्बातों से ।
क्यों तुम अचानक आ जाते हो,
किसी आंधी की तरह ,
सब के सब एक साथ।।

घबरा उठती हूँ मैं ,
सँभाल नहीं पाती ।
तुम सबको एक साथ ,
उतार नहीं पाती।।

तुम आपस में ही  उलझे रहते हो ,
बेमाने से रिश्तों में ।
फिर मुझे याद आते हो ,
एक -एक कर किस्तों में।।

ऐसे कैसे मैं उतार  पाऊँगी तुम्हें,
बिना उतारे कैसे पहचान पाऊँगी तुम्हें ।
इसलिए तुमसे एक गुजारिश है ,
इस दिल की यही ख्वाइश है।।

आना है तो आओ ,
हवा के ठंढे झोकें की तरह ,
और दे जाओ मुझे सुकून।
फिर तुम समझ में आ जाओ ,
और  मैं तुम्हे उतार सकूँ।।

- शोभा पीयूष