हैं अधूरीसी चाह तेरी जो बरसों की ज़रा पूरी कर..
के तुझें भुला न पाऊ भुलनेपर भी मैं क़भी इसकदर..
कसके पकड़लो औऱ चुमलो ऐसे भरलो मुझें बाहोंमें..
के पिघलने लगू मैं मोमसा तू सिमट जा शोला बनकर..
इतना बेबस हो जाऊ मैं की मौत आसान जिना मुश्किल
हाथोंसे हाथों को छोड़ना दुश्वारियों भरा तुम्हें तनहा छोड़कर..
कुछ इसतरह बह जाना तुमभी मुझमें मेरे छूने पर मेरी चाहतोंपर..
©मी शब्दसखा
- शंकर जाधव | Careless_pen