बेमतलब खुदगर्ज़ सियासत में दो मुल्क बँट गए,
कितने ही होंगें रिश्ते, जो सरहद में सिमट गए,
बहता है लहू प्यार का! इधर भी है, उधर भी,
इंसानियत मोहताज़ कहाँ, नफरत की तलब की,
कुछ लोग मुखोटेदार है, उनकी ही ज़ालिम फसाद है,
बेचने चले है देश को, वतन का व्यापार है,
है रब अगर, ख़ुदा भी है, अल्लाह को कसम है,
मनसूबे हो नाक़ाम इनके,
चाहे फिर वो करले जितने भी जतन है,
क्योकि ये देश दोनों अब जुदा सही!
पर बात वही है, आती है हमे मोहहब्बत,
और दिल ऐ जज़्बात सही है ।
- Shivani.