दिन खत्म हो रहे हैं.. रातें खत्म नही होती, हँसी गायब हो रही हैं.. दुख की बातें गायब नही होती, चली जा रही है ज़िन्दगी, नही होती तो बस... साँसे खत्म नही होती।
नदी बहती है; शोर करती है जब रौद्र होती है; वक़्त लेती है पर शांत हो जाती हैं; प्यास मिटाती हैं जग की, बहती जाती हैं अविरल, मिल जाती हैं सागर से और अस्तित्व को अपने फिर भूल जाती हैं...!!
ना वो जताते हैं; ना वो बताते हैं, कि किस तरह पापा लोग बच्चों के लिए हर मुश्किल से लड़ जाते हैं, दोपहर में काम पर भले खुद कुछ ना खाते हैं.. फिर भी कभी ना वो बताते है; ना ही जताते हैं, सच तो ये है दोस्तों... पापा के पैसों से ही बच्चे खाते हैं; और आज हम जो पैसे कमाते हैं; वो उन्ही के आशीर्वाद से आते हैं; उन्ही के आशीर्वाद से आते हैं....!
पानी की बूँदे; गिरती हैं आकाश से; टप-टप करती; और उड़ जाती है फिर से इस वातावरण में; लौटती है नयी होकर; नए आकार में; नया रूप लेकर, जैसे कोई तितली; अपने रंग छोड़ती हैं, और नए रंग ढूंढने में लग जाती है, या फिर कोई स्त्री; जो अपना सर्वस्व देकर चली जाती है; नए जीवन मे रंग भरने..!