शिवांगी श्रीवास्तवा   (इनायत💌)
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Joined 9 May 2017


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Joined 9 May 2017

थोड़ा सा जो ठहर गया
मत समझ की मंजिल पूरी है
अभी तो आधा सफर हुआ है
आधे की अभी दूरी है।
क्या हुआ जो पत्थर पाँव पड़े
और घोर अंधेरा छाया है
क्यूँकर अब मैं रुक जाऊँ
जब दिल मंजिल पर आया है
क्या करेगा गहरा अँधियारा
जब दीप हौसले का उज्जवल
जब ठान लिया है राही ने
मिल जाएगी मंजिल आज या कल
मन कहता है तुम हारोगे,
तो जीत सका है क्या कोई?
गर मन कहता तुम जीतोगे,
तो हरा सका है क्या कोई?
जब दीप अटल हो साहस का
क्या करे फिर आँधी और तूफ़ाँ
जब लक्ष्य हो आँखें मछली की
फिर बन अर्जुन तू तीर चला
या भाग्य भरोसे बैठा रह
कहता रह मजबूरी है।

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दो
अजनबी❣️

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मेरी उंगलियों में अपनी उंगलियों को डालकर
वो ले गया है मेरा मुक़द्दर सम्भाल कर

ये जिक्र था कि आसमां छूने की है ख्वाहिश
मेरे लिए ले आया आसमां उतारकर

चूम कर जबीं दो जिस्म एक जान कर दिया
सोता रहा वो शब भर मुझे बेकरार कर

भर कर के मेरे मांग में सब चांद सितारे
ले आया शफ़क़ से वो हर एक रंग निकालकर

नज़रे जो मिलाए तो चित उसकी है पट उसका
क्या फायदा हवा में यूं सिक्का उछाल कर

शिवांगी श्रीवास्तवा




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बहारों से कभी दिन हैं
महकती हैं कभी रातें
बयाबान है कभी हर-सू
ज़िंदगी की ये सौगातें
मकीन है मेरे दिल का जो
बसेरा जाने कहां उसका
लबों तक आ कर ठहरी हैं
दिलों की अनकही बातें

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पीहर से विदा लेती
स्त्री के हृदय में
सिमटे होते हैं
कई अनकहे प्रश्न

पक्षी को कैद कर
रख दिया जाएगा पिजरे में
या नाम हो जाएगा
ये समस्त गगन।

नन्ही कली महकते हुए
सवार देगी जिंदगियां
या नोच कर बिखेर दी जाएंगी
सारी पंखुड़ियां।

मुस्कराहट के आभूषण से
अलंकृत होगा देह
या ज़ख्म में पिरोया होगा
प्रीतम का स्नेह।।

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क्या इतना आसाँ है
कह जाना सारी बातों को ?
-शिवांगी श्रीवास्तवा "इनायत💌"



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सुनो तुम मेरी पलकों पर
ख्वाबों को सजा दो ना
मै ठहरी झील हूँ कोई
मुझे दरिया बना दो ना
हो बातें आंखों आंखों में
कोई तो शाम यूं गुज़रे
मै तेरी बाहों में सिमटूं
तू मेरी ज़ुल्फ़ों में बिखरे..

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वो सोचते थे जुदा होकर हमें बेज़ार करेंगे
सहर बेचैन करेंगे शब-ए-बेदार करेंगे
हैं बद-गुमानी में उन्हे ये इल्म नही है
ढहती हुई इमारत को क्या मिस्मार करेंगे

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🍀तू रौशन सा सहर जानाँ
मैं स्याह रात जैसी हूँ

तू आफ़ताब अफ़रोज़ कोई
मैं तन्हा चाँद जैसी हूँ

तू गहरा खामोश सागर सा
मै दोशीज़ा लहर कोई

तू मुक्कमल इश्क है जानाँ
मैं अधूरे साथ जैसी हूँ🍀

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जिंदगी रूकती कहाँ है,चलती रहती है
 ये वक़्त की रेल निकलती रहती है 

आज हम हैं कल कहाँ हो क्या पता 
ज़िंदगी हर मोड़ पर करवट बदलती रहती है 

रात सिसकियों में डूबी हुई गुजरती है 
हर सहर नयी रौशनी बिखेरती रहती है 

जिन्दा-दिली से जी है तो एक ज़िंदगी जी है
बे-दिली रोज-ओ-शब् मिलती रहती  है 

किस की दुनिया हुई है सैराब यहाँ
हर रोज नयी हसरते निकलती रहती है 

मुट्ठी भर रेत सी है ये जिंदगानी अपनी 
रफ़्ता-रफ़्ता फिसलती रहती है 

मंजिल की है जुस्तजू तो अलग राह बना 
हुजूम के पीछे तो ये दुनिया चलती रहती है 






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