Shivam Rana   (Shivam Rana)
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Male
Joined 3 December 2018


Male
Joined 3 December 2018
15 JUN AT 0:56

जो छूट गया तेरी जिंदगी से उसे हासिल करके दिखा
मैंने शराब पी रखी है ये साबित करके दिखा
दस्तावेज सारे जल चुके मेरी बेगुनाही के
सच के साथ तू खड़ा है तो वाक़िफ़ करके दिखा !

हैसियत ना पूछ मेरी वो दुनिया को मालूम है
तू सही है जहाँ में तो ख़ुद को शामिल करके दिखा
गुनाहगारों की फ़ेहरिस्त में नाम तेरा लिखा है
ऐसा काम कर और ख़ुद को कामिल करके दिखा !

शटर बंद है बाज़ारों के और घरों के टूटे है ताले
इज़्ज़त लूटने वालों के बीच तू साहिल बनके दिखा
उर्दू लिखने का शौक़ नहीं मुझे सच में
पर नाम कमाने के लिए ग़ालिब बनके दिखा !

होंगे तेरे किस्से हज़ारों दुनिया में यायावर
पीढ़ा में ख़ुद को शामिल करके दिखा
खैर
जो छूट गया तेरी जिंदगी से उसे हासिल करके दिखा
मैंने शराब पी रखी है ये साबित करके दिखा !!

I_am_likhari

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8 APR AT 12:40

पहाड़ों में रहते बूढ़े नाना नानी
कभी मिलने जाओगे ग़र तो सुनाएँगे बहुत सी कहानी
क़िस्से बहुत है उनके पास
साथ बैठ कर सुनना उनकी ज़ुबानी ।

तुम मिलोग़े तो वो खुश हो जाएँगे
चूल्हे वाली चाय तुम्हें ख़ुद से पीलाएँगे
ठंडा होने पर तो नाना पुरानी रम भी ले आएँगे
और तारे दिखने तक तुमसे खुलकर बतलाएँगे ।

तुम दो आना चार आना
नानी कहती है एक बार आना
तुम्हें मंजी पर बैठाकर वो नीचे बैठ जाएँगे
तुम्हारी सहूलियत के लिए वो कुछ भी कर जाएँगे !

सुबह की सैर नाना के साथ करना
गुमखाल के जंगलों की तुम अपनी ही आवाज़ सुनना
वापिस आ नानी साथ हाथ बटा देना
दोपहर को तुम चूल्हे पर भट की दाल चढ़ा देना ।

सब्ज़ियाँ सारी यही लगी है
कुछ ले जाना अपने घर के लिए
प्यार तो मिला ही उनमे
एक याद रखना जाते हुए सफ़र के लिए

गाँव की ख़ुशबू को खुद में समेट लेना
नानी नाना को जाते जाते सीने से लपेट लेना
वो तुम्हें आशीर्वाद और प्यार करेंगे
शहर वालों जल्दी ही आना
वो तुम्हारा फिर से इंतज़ार करेंगे !

I_am_likhari

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21 MAR AT 13:32

रीलों के दौर में कविता सुनाता हूँ
भटकता मुसाफ़िर हूँ मैं दूर तक जाता हूँ
किसी की आँखों में चुबता तो किसी को भाता हूँ
अकेले बैठ कभी दर्दों के साथ मैं मंद मंद मुस्कुराता हूँ !

यापक, याचक , लालच और नाटक
ज़िन्दगी में बनी रहती हमेशा से आहट
कड़वे बोल हमेशा ही रहे है घातक
प्यार और परिवार में ही है असली ताक़त!

रोज़ बोल सुनाऊगा तुम पढ़ने की चाह रखना
नदी पार कर नए रास्तों पर जाएँगे तुम साथ एक नाव रखना
दूर दराज़ बैठे हो बड़ी बड़ी बिल्डिंगों में
दिमाग़ से शहरी हो पर दिल को हमेशा गाँव रखना !

खैर

रीलों के दौर में कविता सुनाता हूँ
भटकता मुसाफ़िर हूँ मैं दूर तक जाता हूँ!!

“विश्व कविता दिवस”
I_am_likhari

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9 MAR AT 19:39

खोई सी है उसके जाने के बाद
आँखों में नमी और दिल में एक आस
साथ वाली सीट पर जो था अपना पास
उसके जाते ही हुआ उसे ज़ोर से एहसास !

दूरी अक्सर हो जाती है
मायूसी दिल में खो जाती है
बदल जाता है वक्त पल भर में
और यादें पलकों को फिर भिगो जाती है ।

आस लगाकर बैठे हैं
गम मिटाकर बैठे हैं
पढ़ ना ले कोई दिल का हाव भाव
इसलिए चेहरा छुपाकर बैठें हैं ।

I_am_likhari

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22 FEB AT 23:37

इतनी ना पिया करो के दिल ना लगे
ज़िन्दगी ख़ुद की पर इलम ना लगे
किरदारों की कहानियों की फ़िल्म ना चले
और दिलों पर दोनों और से सितम ना ढहे

माफ़ कर दिया करो
कभी शराब पिया करो
महखानों में जाकर दोस्त
तुम ख़ुद से बात किया करो

और फिर इंतज़ार ना किया करो
इकरार खुलकर किया करो
क्या हुआ अगर वो ना आए
पर तुम प्यार आख़िर तक किया करो

किस मजहब से हो तुम क्या फ़रक पड़ता है
जब बात मुहब्बत की आ जाये तो एक आख़िरी कश तो लिया करो !!

I_am_likhari

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18 FEB AT 16:25

दिल जरा तोड़ कर मुस्कुरा तो दिया करो
सीने में आग मेरे लगा तो दिया करो
वादों की लंबी कतारों में हम भी शामिल हुए
बदलते चेहरों से आईना हटा तो दिया करो

इत्मीनान और इम्तिहान भी हमने अपने पास रखा
तुम दिल के दरवाज़ों से ताला हटा तो दिया करो
निपट गए सारे आशिक़ कर रहे इंतज़ार जो
किसी एक के होकर शांति दिला तो दिया करो

खैर क्या जाता है दिल को समझाने में
झूठी कहानी ही हमे सुना तो दिया करो
बहुत हुए फूल और काटों के किससे
मिलते ही सीधे सीधे शराब पीला तो दिया करो

I_am_likhari

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6 FEB AT 18:59

इंसानी फितरत
ज़ुबानी फ़ितरत
निशानी फ़ितरत या ख़ानदानी फ़ितरत

कर भला तो बुरा होवे
ये कलयुग यहाँ लोग नफ़रती बीज बोवे
आवाज़े कोयल की मगर अंदर से कोवे
शरीफ़ आदमी चैन की नींद भला कहाँ से सोवे

I_am_likhari

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18 JAN AT 14:38

जग की रीतें अलग अलग मानुष
किसी का मोक्ष जन में “तो किसी का वन में”
ख़ुद पर काबू बस यही हैं प्राप्ति
गंतव्य तक तो पैसेंजर भी पहुँचे “जैसे पहुँचे शताब्दी”

तेरा अलग है मेरा अलग
मन की परछाई की बस एक झलक
तेरी शराब पसंदीदा
मुझे बूटी की तलब
दोनों ही अपनी धुन में “ना हमे दुनिया से मतलब”
हजारों ख़ज़ाने दबे संसार में
मैं पांचवी की सुबोध पढ़के बन चला मगध !

तू तेरे कोट में रह
मुझे भेष मेरा प्यारा
बाहर गया हूँ माना पर देश से ना किया किनारा
मन भटकता राही पर जब मिले इसे सहारा
आँखें बंद और ध्यान में दिखे मुझे दुनिया का नज़ारा!

I_am_likhari

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8 JAN AT 1:31

बात ख्यालों की हो तो यही हो तुम
सामने खड़ा हूँ तेरी आँखों में सीधे देखता मैं
तेरे होंठों को छूने की कोशिश ज़ारी है ।

i_am_likhari

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6 JAN AT 18:15

बदलते देख रहा हूँ दोस्तों को मैं
अब बात करतें है तो वो बात नहीं आती
खुलकर जीने का नज़रिया बदल गया
या घिर गए होंगे कुछ चुनौतियों में!

अब ना मिलने आते है ना ख़ुद बुलाते है
दोस्ती का दोस्तों में बँटवारा किए जाते हैं
पहचान के नाम पर फ़ोन बुक में सीमित है
या यूँ कहूँ तो दोस्त अब फ़ेसबुक पर जीवित हैं!

नज़रिया नज़रों का अलग अलग हो गया मानो
सब एक दूसरे की नज़र में प्रश्चिनित हैं
तेरा ठिकाना अलग और रास्ते मेरे अलग
ज़िंदगी ना जाने देती कैसा ये सबक
दोस्तों का साथ होता तो लगता सब कुछ ग़ज़ब
खैर दोस्ती बिछड़ी तो आज मेरे कम पड़ गए लफ़्ज़!!

I_am_likhari

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