Shilpi Verma   (शिल्पी वर्मा)
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इंतज़ार ना करना मेरे लौटने का
देर लगेगी इस बार कि खुद को ढूँढने निकली हूँ
Joined 9 February 2019


इंतज़ार ना करना मेरे लौटने का
देर लगेगी इस बार कि खुद को ढूँढने निकली हूँ
Joined 9 February 2019
8 JUN AT 22:25

सुना है
जब मादा मेंढ़क को
कोई नर मेंढ़क पसंद नहीं होता
तो वह नाटक करती है मरने का
जिस से नर मेंढ़क
उसके साथ संबंध नहीं बनाता
और वापस चला जाता है
किन्तु पुरुष तो
मरी हुई स्त्रियों को भी नहीं छोड़ते।

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7 JUN AT 19:19

हिन्दी व्याकरण का इतना अधिक ज्ञान तो नहीं मुझे
किन्तु माँ शब्द में चन्द्र बिंदु का होना समझ आता है
जरूर चन्द्र बिंदु को इस स्थान पर गर्व महसूस होता होगा।

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6 JUN AT 22:14

विश्व की तमाम भाषाओं में
जब लिखे गए
लड़की के पर्यायवाची
तो छूट गया एक पर्यायवाची
हर एक भाषा में
मुझे दुनिया की तमाम भाषाएं तो नहीं आती
हां लेकिन
हिन्दी में वह पर्यायवाची "त्याग" है
अंग्रेजी में "sacrifice" है
और उर्दू में "क़ुर्बान" है।

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6 JUN AT 8:35

क्या सच में खुद को प्राथमिकता दे पाना
इतना कठिन है
कि instagram पर भी खुद को
कोई reel शेयर करनी हो
तो खुद ही को search करना पड़ता है।

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5 JUN AT 7:30

प्रकृति भेदभाव नहीं करती
वो बरसती है बारिश बनकर
छोटे-बड़े सभी शहरों पर
वो चमकती है धूप बनकर
गाँवों पर, कस्बों पर
वो पेट भरती है सबका
चाहे मनुष्य हो या जानवर
दरअसल प्रकृति एक मां की तरह है
जिस प्रकार एक मां फर्क नहीं करती
अपनी किसी भी संतान में
और उन्हें सींचती है
अपना पेट काटकर
ठीक उसी प्रकार
प्रकृति भी हम सबको सींच रही है सदियों से
अपना पेट काटकर।

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4 JUN AT 22:08

आज आइसक्रीम खाते हुए सोचा
काश life भी आइसक्रीम खाने जितनी आसान होती
पर फिर याद आया कि
कभी-कभी आइसक्रीम भी दांतों में sensitivity कर देती है।

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4 JUN AT 9:39

हिन्दी व्याकरण का कोई अधिक ज्ञान तो नहीं मुझे
किन्तु माँ शब्द में चन्द्र बिंदु का होना समझ आता है
ज़रूर चन्द्र बिंदु को इस स्थान पर गर्व महसूस होता होगा।

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30 MAY AT 22:52

मां का दिल बहुत बड़ा है
मां अपनी बेटी को गाली देने वाले
उन लोगों को भी माफ कर देती है
जिनसे उसका कोई खून का रिश्ता नहीं होता
पर सोचती हूं
मां की आत्मा तो रोती होगी ना

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30 MAY AT 11:40

मुझे नहीं पता
क्यों नहीं बचा पाया मेरा ईश्वर
मंदिर में बलात्कार हो रही
उस पांच वर्ष की बच्ची को
मुझे तो बस इतना पता है
कि सर्वोपरि एक शक्ति है
जिसे हम सबने
अलग-अलग नाम दे दिए हैं
और जब जीवन हमारे वश से बाहर हो जाता है
तो हम उसी शक्ति को याद करते हैं
किन्तु
शायद मुझे इसलिए भी नहीं पता है क्योंकि
ना तो उस बच्ची से मेरा कोई संबंध है
और ना ही वो बच्ची मैं खुद हूं
और यदि इन दोनों बातों में से
एक भी बात सत्य होती
तो या तो मेरा विश्वास उस सर्वोपरि शक्ति से हट जाता
या मैं मृत्यु को प्राप्त हो चुकी होती।

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24 MAY AT 15:28

जीवन में जब भी लिखूंगी
अपनी पहली पुस्तक
समर्पित करूंगी अपने माता-पिता को
क्योंकि समाज कहता है कि
एक लड़की
जिसे माता-पिता पाल पोसकर
बड़ा करते हैं बड़े प्यार से
उसे बनाते हैं स्वावलंबी और आत्मनिर्भर
उनका अधिकार नहीं होता
अपनी बेटी के चंद पैसों पर भी
इसलिए सोचती हूं
उन्हें अपनी अमूल्य
कविताएं समर्पित करूं।

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