SHIKHAR S.BOSE (कायस्थ बन्धु)   ({✍🏼एक_कोशिश_मेरी✍🏼})
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Joined 17 April 2018


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Joined 17 April 2018

बहुत अर्से से हम ढूंढ रहे
एक उम्र से हम ख़ोज रहे
सिर्फ़ बातों में ही मौजूद है
या वहम को ही हम मान रहे
ये सुकून जैसा कुछ,सच में है
या किसी झूठ को ही तलाश रहे।।।

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ज़िंदगी के प्रपंच
आदमी किसको सुनाए
ख़ुद पर हंसे,या
क़िस्मत पर तरस खाए
जब जिंदगी के बदलावों में
सिर्फ़ तकलीफें ही बड़ जाए
हालतों में न सुधार और
उम्मीद भी दम तोड जाए
बोलो ये दर्द आदमी किसको सुनाए।।।।

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सुकून,आराम की जिंदगी
ये शब्द अब छलावे से लगते है
ये उस बढ़ते हुई उम्र के
गणित के पहाड़े से लगते है
जिन्हें रट तो रहे है हम
बस अब समझ के बाहर से लगते है
ये सुकून और आराम अब छलावे से लगते है।।।

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ख़्वाब संभाला हमनें कुछ ऐसे
मानों रखते है कोई चीज़ हो जैसे
अगर मिलेगा वक्त तो जिएंगे कुछ वैसे
वर्ना आयेगी मौत लिपटे उस ख़वाब के जैसे।।।

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इंतज़ार
हां, इंतज़ार तो है!!!
बस उस एक शाम का
जिसमें हो थोड़ी तसल्ली
थोड़ी फुरसत का आराम सा
सुख न हो उसमें तो गम नही
बस ना हो कोई दुःख नाम सा
थोड़ी चिंता हो कल की
पर जीऊं मैं हमेशा आज सा।।।

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डरता हूं मैं
मेरे ही ख्यालों से
मानों सच हो गए
तो क्या होगा जवाब
उन मेरे ही सवालों से
क्योंकि साथ तो बस
एक ख़्याल मात्र है
मैं तो डरता हूं बस
उन हकीकत के छलवाओं से।।।

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हमको भी बुलाओ उस महफिल में
जहां ज़िक्र तुम्हारा होता है
सुन लेंगे कुछ किस्से तेरे
देखेंगे क्या ज़िक्र हमारा होता है।।।

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लोग अपनी अपनी कहानियों में मशरूफ है
और हम अब भी झूठे लतीफें सुना रहे।।।

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आज कल रात गुजरती है ऐसे
मानों ठहरने की ना हो बात कैसे
उस शोर में मशगूल रहो तुम ऐसे
जिसमें न हो दर्द और न आए
याद भी तुम को कैसे।।।।
🌈🌈🌈

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ना ख़्वाब था इन आंखों में
ना जोश था उन बातों में
बस कुछ जिम्मेदारियां थी
जिनका बोझ था इन हाथों में।।।

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