कजरारी अँखिया   (शिखा जैन)
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Joined 8 January 2018


Joined 8 January 2018

जो सबसे छिपा के रक्खा है वो राज़ बता दूँ क्या
नाम तेरा लेकर आग महफिल में लगा दूँ क्या ?

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मन की बेचैनियों के हल
देह की अंतरंगता में कहाँ मिलते हैं ?

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चले साथ कुछ कदम फिर रास्ते बदल लिए
सफ़र दो कदम का था फिर भी यादगार है

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किसी ने पूछा हाल जो ,मुस्करा दिए जरा
किसी से दिल की क्या कहें गम यहां हजार हैं

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कि दोस्तों से कह दिए सारे राज़ इश्क के
हमें लगा था ये के तू हमारा राज़दार है

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बेकरार करके बढ़ गया जो नई सी राह पर
उसे कोई बता तो दे वो ले गया करार है

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पहले पहल समझ में ये आया नहीं
बस तू ही तू ही है मेरी ज़िन्दगी

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रंगों बू से है रौशन किया ये जहां
पर मेंहदी सी सिल पर पिसी ज़िन्दगी

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सांझ ढलते हुई सुरमई ज़िन्दगी
चांद तुम हो चांदनी बनी ज़िन्दगी

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कभी लगती थी एक सज़ा ज़िन्दगी
तुझे पाकर खुशी से खिली ज़िन्दगी

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