Shelly   (Shelly)
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Joined 31 January 2018


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30 DEC 2023 AT 20:49

इस साल में -कहीं मैं हार गई, कहीं वक़्त जीत गया.....
और यू ही देखते देखते ये साल अपने अंदर बहुत कुछ लेकर यू ही बीत गया...
Sakshi

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27 AUG 2022 AT 11:33

वो जला दी जाती है,
तौल देता है समाज एक नारी को चंद सामानों के तराज़ू में,
टूट जाता है बाबुल कर के भरपाई सामानों की,
फिर भी चित्तकार नहीं रुकती हैवानों की
जला दी जाती है बेटी किसी गरीबखाने की।
मां का आंचल, बाबा का आंगन छोड़
वो विदा तो कर ली जाती है,
पर बिना दहेज के कहा वो जी पाती है ।
गहना न देना बाबुल मुझको,
पर शिक्षा जरूर दिलाना।
देख रही हु कुछ सपने,
बस उनके पूरे होने तक तुम ठहर जाना।
ब्याही बेटी की अर्थी न तुमको आंख दिखाएगी ,
दहेज की आग में कोई दूजी बेटी न जलाई जायेगी
मेरी डोली को बस तुम कंधा देना,
लेकिन पहले मुझको मेरी उड़ान भरने देना।
मैं तुम पर बोझ नहीं कहलाऊंगी,
कंधे से कन्धा मिला कर जिम्मेदारी सारी निभाऊंगी।
Sakshi

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12 AUG 2022 AT 23:41

बेहतर होता है उन रिश्तों का टूट जाना,
जिन्हें निभाते निभाते तुम टूट जाओ।
बेहतर होता है उन रास्तों का बदल जाना,
जिन पर जाते हुए तुम खो जाओ।
वक्त लगता है "हम" से "मैं" हो जाने मे,पर
जब उस पल "मैं" को ढूंढ लो तो बस वही ठहर जाओ।
Sakshi

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18 JUN 2022 AT 22:25

देश खतरे में है
अन्न को समर्पित किसान,आज भ्रमित है
मेरे देश का जवान,आज भ्रमित है।
रेल जल रही है,तो सभी को दिख रहा है।
पर क्या इस अग्नि मे युवा के सपने भी अर्पित है।
तानकर सीना वो जो बंदूक की गोलियां खा आता था।
छोड़कर गांव की गलियां,वो जो सरहद को घर मान लेता था।
हिंद की शान पर उंगली उठाने वाले को,
वो यमलोक दिखा आता था।
आज आक्रोश मे है या,वो झूठे जोश में है।
अपने ही देश को मिटा रहा है, ना जाने कौनसा सपना वो सजा रहा है।
दंभ भरता है सरकार के झूठे वादों का,
तो आखिर वो क्या देश को जलाकर,देश बचा रहा है।
बिक जाती हैं ज़मीन मुल्कों की, अगर फूट अंदरूनी हो जाए।
लेकीन यहां तो विवेकानंद का युवा,
अपने ही मुल्क को जलाए जा रहा है।
है कैसा ये आक्रोश जो अहिंसा को ही हथियार माने है,
देश बेचने वालो को क्यों अब तक न पहचाने है।
सब्र करो,उफान लाओ,
पर ये नही की तुम उग्रवाद का तूफान लाओ ।
बाधाऐ पल पल आएगी, उनसे लड़ना सीखो।
जलना जलाना ही तो दीप की तरह जलना सीखो।
Sakshi

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18 JUN 2022 AT 22:22

शीश झुकाती दुनियां जीत के आगे
हार कर तू क्यों हैरान हैं,
हारने वाला भी जीतेगा कभी,
ये बात तो आम है।
घोर निशा के बाद, अर्णव में चमकता सूरज है।
लक्ष्य है निर्धारित तो पाएगा तू मंजिल,जो तुझमें बस धीरज है।
जो बीत गया उसे जाने दो,
मंजिल की नई दिशा को नज़र आने दो।
ठहर जाओ,पर रुकना मत,
दो कदम ही तो रहे हो, हार का सोच कर तुम बस झुकना मत।
लगे रहो अपनी धुन में, जीत का वीजा भी आएगा।
ये वक्त ही तो है, ख़ामोश रहो,ये तो यू ही बीत जाएगा।
जो तुमने हार मान ली,मौका चला जाएगा।
थाम दी अगर सांसे अपनी,तो हर जंग को तू हार जाएगा।
Sakshi

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14 FEB 2022 AT 21:16

भागती दौड़ती दुनिया मे कुछ ठहराव आ जाते,
रास्ते, मंजिल के लिए निकलते है लेकिन कही ओर मुड़ जाते है।
सफ़र लड़खड़ाता है, और कुछ रंग नज़र आते हैं
धीरे धीरे ही सही, रिश्ते भी अपनी असलियत दिखला जाते है।
साक्षी

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6 FEB 2022 AT 10:34

स्वर शांत हो गए, राग कही खो गई है।
इक सदी राज़ करने वाली आवाज़,
आज सदा के लिए मौन हो गई है।

स्वर कोकिला, भारत रत्न श्रद्धांजलि
साक्षी

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23 JAN 2022 AT 17:07

लिखने का शौक नया नहीं, लेकिन पुरानी बातें दोहराने से डरती हूं।
मन मे है एक अजीब सी कश्मकश, बस उन्हें पन्नो में उतारने से डरती हूं।
इक सवाल ज़हन को चीर देता है, फिर भी जानें क्यों
उन्हीं रास्तों से निकलती हू।
हाथ छूटे, साथ छूटे - नादान सी है आरजू,
आना नहीं है जिसे उसी का इंतजार ताकती हूं।

Sakshi

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25 DEC 2021 AT 21:55

खुद की खोज में हू,
शांत, एकांत में हू।
पथिक हू, महाभारत के रथ की
जाने क्यों रहती हूं आजकल खुद मे ही व्यस्थ सी।
Sakshi

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29 SEP 2021 AT 6:57

बीत गए जो वर्ष अब बस यादें रह गई है,
थाम के उंगली जो चलना सीखा था,
उनकी तो बस बातें रह गई है।
अरमान बहुत थे संग मुस्कुराने के,
आया एक तूफान और अब बस मुस्कान फीकी हो गई है।
कंधे पर बैठ के दुनिया दिखाने वाले, कंधो पर विदा हो गए,
होते जो आज आप तो जानते कि बच्चे आपके वक्त से पहले कितने बड़े हो गए।
होते जो आप तो लाख लाड लड़ाती,
कभी तो आपसे रूठती, कभी आपको मनाती।
ना जाने क्यों ये हक मेरा ना रहा,
थी जो आंगन की मै चिड़िया,
जाने से आपके बस मेरा बसेरा ना रहा।
पापा हाथों को तुम्हारे छुने को दिल चाहता है।
नहीं आओगे आप कभी जानती हूं,
लेकिन ये दिल कहा मानता है।
Sakshi

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