देश खतरे में है
अन्न को समर्पित किसान,आज भ्रमित है
मेरे देश का जवान,आज भ्रमित है।
रेल जल रही है,तो सभी को दिख रहा है।
पर क्या इस अग्नि मे युवा के सपने भी अर्पित है।
तानकर सीना वो जो बंदूक की गोलियां खा आता था।
छोड़कर गांव की गलियां,वो जो सरहद को घर मान लेता था।
हिंद की शान पर उंगली उठाने वाले को,
वो यमलोक दिखा आता था।
आज आक्रोश मे है या,वो झूठे जोश में है।
अपने ही देश को मिटा रहा है, ना जाने कौनसा सपना वो सजा रहा है।
दंभ भरता है सरकार के झूठे वादों का,
तो आखिर वो क्या देश को जलाकर,देश बचा रहा है।
बिक जाती हैं ज़मीन मुल्कों की, अगर फूट अंदरूनी हो जाए।
लेकीन यहां तो विवेकानंद का युवा,
अपने ही मुल्क को जलाए जा रहा है।
है कैसा ये आक्रोश जो अहिंसा को ही हथियार माने है,
देश बेचने वालो को क्यों अब तक न पहचाने है।
सब्र करो,उफान लाओ,
पर ये नही की तुम उग्रवाद का तूफान लाओ ।
बाधाऐ पल पल आएगी, उनसे लड़ना सीखो।
जलना जलाना ही तो दीप की तरह जलना सीखो।
Sakshi
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