मेरे शब्दों के कोई सिर-पैर नहीं होते, जब तक अंदर रहें मन के कोने में बिलबिलाते रहते हैं, मैं इन शब्दों को पचा नहीं पाता अपच से पीड़ित मेरे मन से निकले इन अनंत शब्दों के बीज से उग आते हैं कई घने जंगल, मैं उन जंगलों में बैठ कर अपने अस्तित्व को नकार दिया करता हूँ....